!! पहला सम्पादकीय!!
‘सत्यकाम’: अख़बार नहीं जन-जागरण
अख़बार
जो घटित है उसका दस्तावेजीकरण
है। वह समय की
शिला पर सजीव विवरण
दर्ज़ करता है। अख़बार की ताकत वर्तमान
में है और उसके
इतिहास बन जाने के
बाद भी है। भारतीय
सन्दर्भ में अख़बार भारत का दिग्दर्शन कराता
है। भारतीयता की असल परिभाषा
एवं इसकी अवधारणा गढ़ने में समाचार-पत्र अव्वल है। प्रश्न उठता है-असली भारत
या भारतीय कौन है? वह, जिसके शास्त्रकार मनु और वशिष्ठ, दार्शनिक
शंकर, रामानुज और वल्लभाचार्य तथा
कवि वाल्मीकि, कंबन और तुलसीदास हैं?
अथवा वह, जिसके शास्त्रकार स्वयं बुद्ध, दार्शनिक नागार्जुन और बसुबंधु तथा
कवि तिरुवल्लुवर, वेमन्ना और कबीर हैं?
ये सब हिन्दू धर्म
के आदि-आचार्य हैं। रामधारी सिंह दिनकर अपने एक निबंध में
भारत की बात करते
हुए ‘हिंदुत्व’ का मुद्दा उठाते
हैं। हम सिर्फ उसका
जिक्र करना भर चाहेंगे। आज
हिंदुत्व पर शोर-शराबा
अधिक है। वैचारिकी कम। दरअसल, दिनकर जी मानते थे
कि, हिंदुत्व अब वही नहीं
है, जो मनु की
स्मृति तथा विद्यापति के निबंधों में
लिखा मिलता है। उसका शाश्वत, चिर, नवीन और जाग्रत रूप
अब वह है, जिसका
आख्यान परमहंस और स्वामी विवेकानंद
ने किया है, श्री अरविंद और महर्षि रमण
ने किया है, गाँधी और स्वामी दयानंद
ने किया है। यह ठीक है
कि विवेकानंद और गाँधी के
बताए हुए मार्ग पर सारी जनता
अभी नहीं चल रही है,
किन्तु यह भी ठीक
है कि समाज के
अग्रणी लोग, जिनका आचरण देखकर समाज अपना आचरण बदलता है, पुराने हिंदुत्व को छोड़कर अभिनव
हिंदुत्व पर आ गए
हैं और जहाँ समाज
के अग्रणी लोग आज पहुँचे हैं,
वहाँ सारा समाज कल पहुँचकर रहेगा।
दिनकर जी की दूर-दृष्टि में हमलोग अपनी आँखों का अनुभव जोड़े,
तो हम सही उत्तर
पा सकेंगे। अथात् स्वातंत्र्योत्तर भारत में हम कहाँ से
चलकर कहाँ पहुँचे हैं?
कांग्रेस
की महाठगी और महालूट से
भारत सन् 2014 में उबरा। केन्द्र में पहली बार गैर-कांग्रेसी सत्ता को आसीन होते
देखा गया। बहुमत की सरकार बनी।
कमान नरेन्द्र मोदी की हाथों में
आया जिनकी लहरदार भाषा और आकर्षक व्यक्तित्व
के आगे सबकी नेतागिरी झर गई। आम-चुनाव के बाद भारत
अभिनव भारत का स्वप्न देखने
लगा। आमजन लोहिया-जयप्रकाश की कर्मभूमि पर
अभिनव हिंदुत्व को अकार लेते
देख रही थी। साफ गंगा और स्वच्छ भारत
अभियान में करोड़ो-अरबों रुपए लगाये जाने को सराह रही
थी। जनता का विवेक ‘पहले
शौचालय फिर देवालय’ के नारे में
राजी-खुशी शामिल हो चुकी थी।
नोटबंदी से भ्रष्ट लोगों
पर अंकुश कसने के सरकारी घोषणा
को भारतीय जनमानस ने सर आँखों
पर लिया। कुछ ही महीनों में
एक हजार और पाँच सौ
के सारे नोटों का देश से
सफाया हो गया। इसके
विकल्प के तौर पर
दो हजार और पाँच सौ
के नए नोट आए।
सारे काले नोट सरकार ने ज़ब्त कर
लिए। खाते में अधिक रकम जमा करने के एवज में
एक लाख से ऊपर लोगों
को आयकर की नोटिस जारी
हुई। जनता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस आह्वान
का कद्र कर रही थी
जिसका नारा था, ‘सबका साथ, सबका विकास’।
देसी
रिपोर्ट से लेकर विदेशी
रुझान तक में भारतीय
अर्थव्यवस्था सबसे मजबूत स्थिति में है। जनता महंगाई की चपेट में
है, लेकिन सरकार के खि़लाफ नहीं
है। किसान कर्ज के बोझ तले
दबकर आत्महत्या कर रहे हैं,
लेकिन सरकार पर अपना आक्रोश
ज़ाहिर नहीं कर रहे हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, बिजली, कपड़ा, कोयला, मानव संसाधन इत्यादि किसी मंत्रालय को लेकर लोग
बेतरह नाराज़ नहीं हैं। स्त्रियों के साथ छेड़छाड़,
बदसलूकी, बलात्कार आदि की घटनाओं से
सबका जी ख़राब है,
लेकिन तब भी लोग
शांतिपूर्वक प्रधानमंत्री के चुनावी हुंकार
और मन की बात
दिल से सुन रहे
हैं। उन्हें मालूम है। संसार में जब भी कोई
युग आरंभ होता है, वह युद्ध के
कारण आरंभ नहीं होता। पराजय या विजय के
कारण आरंभ नहीं होता। क्रांति के कारण आरंभ
नहीं होता, न देश का
नक़्शा बदलने से आरंभ होता
है। नया युग बराबर नए प्रकार के
लोगों के जन्म के
साथ उदित होता है। नरेन्द्र मोदी जिनका मीडियावी इतिहास (रिकार्ड) ख़राब रहा है। आज भारत के
उज्ज्वल भविष्य के रागदाता हैं।
वह देशसेवा में प्राणप्रण में जुटे हैं। वह संकल्पों का
पिटारा हैं जिनके मन की बात
में देश शामिल है सिर्फ व्यक्ति
नहीं। विपक्षी जन जो जनादेश
में बौने साबित हुए हैं लगातार पूछ रहे हैं-‘मोदी जी के प्रधानमंत्री
बनने से क्या हुआ?’
जबकि यह पूछने वाले
सब जानते हैं। प्रधानमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था
को ‘क्लाइमेक्स’ दी है। ‘स्मार्ट
सिटी’ का नक़्शा तो
‘बुलेट ट्रेन’ का रफ़्तार दिया
है। नरेन्द्र मोदी पूरी दुनिया का सैर कर
यह जान गए हैं कि
नगर सभ्यता का प्राधान्य आधुनिकता
का गुण है। सीधी-सादी अर्थव्यव्सथा मध्यकालीनता का लक्षण है।
आधुनिक देश वह देश है,
जिसकी अर्थव्यवस्था जटिल और स्वभावतः ही
प्रसरणशील हो, जो ‘टेक आॅफ’ की स्थिति को
पार कर चुकी हो।
बंद समाज वह है, जो
अन्य समाजों से प्रभाव ग्रहण
नहीं करता, जो अपने सदस्यों
को भी धन या
संस्कृति की दीर्घा, में
ऊपर उठाने की खुली छूट
नहीं देता है। आधुनिक समाज में उन्मुक्तता होती है, उस समाज के
लोग अन्य समाजों में मिलने-जुलने में नहीं घबराते, न वे उन्नति
का मार्ग खास गोत्रों के लिए ही
सीमित रखते हैं। आधुनिक समाज का एक लक्षण
सह भी है कि
उसकी हर आदमी के
पीछे होने वाली आय अधिक होती
है, हर आदमी के
पास कोई धंधा या काम होता
है। गतिशील और आधुनिक समाज
में बेकार और बेगार लोगों
की तादाद बिल्कुल नहीं होते है। इसी कारण अवकाश की शिकायत प्रायः
हर एक को रहती
है।
अभिनव
हिंदुत्व का एजेंडा सर्वग्राही
होता है न कि
सर्वग्रासी। कांग्रेस अपनी नीयत से खोटी थी
जिस कारण उसकी योजनाएँ परवान नहीं चढ़ सकी। मौजूदा
सरकार की नीतियाँ लोककल्याणकारी
यानी जनहितकारिणी है जिसका आदर्श
मंदिर है-‘नीति आयोग। नीति
आयोग की घोषणा है-‘हर एक व्यक्ति
देश का नागरिक है-कांग्रेसी मुलम्मे का हिंदू या
मुसलमान नहीं।‘ सरकारी-तंत्र का हर खंभा-स्तंभ साफ-सुथरा हो इसलिए सरकार
का स्वर्णसूत्र है-‘काम, काम, काम’। क्योंकि काम करते हुए हर एक भारतीय
वह सबकुछ पा सकता है
जिसका वह हकदार है।
नरेन्द्र मोदी देश को आगे ले
जाने को दृढ़प्रतिज्ञ हैं।
उनका अभिनव हिंदुत्व पूरे विश्व में लोकप्रिय हो चला है।
भारत
की ताकतवर छवि गढ़ने में नरेन्द्र मोदी की तरह ही
हर एक व्यक्ति को
जवाबदेह होने की जरूरत है।
सत्ता और शासन में
बैठे लोगों से एक-एक
रुपए का हिसाब माँगने
की दरकार है। वह अपने हक़-हकुक राजनीतिक मुहावरे में भूले नहीं यह अहसास जिंदा
रखने के लिए ही
हम आगे आए हैं। हमारा
मोर्चा सत्य का है। हमारा
संकल्प वादों का नहीं काम
करके दिखाने का है। प्रचार
और विज्ञापन से अख़बार के
पन्ने रंगीन किए जा सकते हैं,
किन्तु ईमानदारी की आभा ‘ब्लैक
एण्ड व्हाइट’ में भी अपना कांति
नहीं खोती हैं। इसीलिए हमारा अख़बार है-‘सत्यकाम’ जिसका नाम नहीं काम बोलेगा और आप सब
सराहेंगे तो हमारा परचम
ऊँचा लहराएगा। यद्यपि लहर के भरोसे ताउम्र
जीने की ख़्वाहियश रखने
वालों की आकाल मृत्यु
जब होती है, तो रुदालियों को
भी रोने का अवसर नहीं
मिलता; हम तो ‘जन
गण मन’ के सच्चे सिपाही
और योद्धा हैं।–संपादक
नोट:
प्रयोजनमूलक हिंदी के विद्यार्थियों के
लिए सम्पादकीय-लेखन का माॅडल
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