Saturday 27 October 2018

लोकानुभव और स्मृति से जुड़ी हैं जमुना बीनी की कविताएँ : प्रो. साकेत कुशवाहा

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रिपोर्ट: डाॅ. राजीव रंजन प्रसाद

ऐसे काम दिल के रास्ते से निकलते हैं जिनका असर व्यापक तरीके से होता है। जिस माटी में हम पैदा हुए हैं उसी से जुड़ी स्मृतियाँ और अनुभव हमारी भाषा में, शब्दों में ज़ाहिर होते हैं। माटी की खुशबू इसी रचनात्मक अवदान के सहारे प्रकट होती हैं। डाॅ. जमुना बीनी का यह काव्य-संग्रह जीवन के भूले-बिसरे, जाने-समझे, कहे-सुने यथार्थ का ही परिणाम है।’’
       उक्त बातें राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने बतौर मुख्य अतिथि कहीं। वे अरुणाचल की चर्चित कवयित्री डाॅ. जमुना बीनी तादर के सद्यः प्रकाशित कविता-संग्रहजब आदिवासी गाता हैके विमोचन के मौके पर बोल रहे थे। माननीय कुलपति ने विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन-कार्य कर रही डाॅ. जमुना बीनी के इस रचनात्मक प्रयास की प्रशंसा की और इस संग्रह को महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि-‘इस तरह के रचनात्मक लेखन से अकादमिक फायदे कितने होते हैं या होते भी हैं अथवा नहीं यह दूसरी बात है; पर लोगों के बीच पहचान और समर्थन इस तरह के लेखन के माध्यम से ही संभव होता है।’’ साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित अरुणाचल के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री येशे दोर्जी थोंगछी ने बड़े ही आत्मीय भाव से कहा कि-‘‘जमुना बीनी की कविताएँ इन्हीं की तरह सहज-सरल मालूम होेती हैं, लेकिन वे कवयित्री की तरह ही भीतर से बेहद मुखर और प्रतिरोधी स्वभाव की हैं; जो पाठक के मन को वेधती हैं, उसके दिलोदिमाग पर मारक चोट करती हैं।’’ 
विश्वविद्यालय के भाषा-संकायाध्यक्ष प्रो. हरीशकुमार शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि-‘‘भाषा सब कुछ सम्प्रेषित कर पाने में भले ही अक्षम सिद्ध होती हो; लेकिन वेदना यदि गहरी हो तो अक्षम मानी जाने वाली भाषा भी सक्षम हो जाती हैं। कवयित्री अपनी प्रान्तीय और राष्ट्रीय चिन्ताओं को जिस तरीके से अपनी कविताओं में रखती हैं उसकी मुख्य कसक यही है कि जो होना चाहिए वह नहीं हो रहा है और जो नहीं होना चाहिए वही रोज घटित हो रहा है। वर्तमान की विद्रूपताओं पर कवयित्री क्षोभ प्रकट करती हैं। उनकी कविताओं में जीव-मात्र का कल्याण एवं उनके प्रति शुभेच्छा व्यक्त हुई है।’’ अपने वक्तव्य के क्रम में सुश्री लीसा लामदोक ने कहा कि-‘इस काव्य-संग्रह का हर शीर्षक अरुणाचली बच्चे के मन के करीब है। जमुना की कविताओं के सभी विषय एवं सन्दर्भ प्रकृृति से अपना अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करते हैं। काव्य-संग्रह की भाषा प्रभावित करती हैं। उनकी सभी कविताओं में प्रवाह है तथा भाषा की सरलता, शब्द-चयन, वाक्य-रचना आदि महत्त्वपूर्ण हैं। जमुना की कविताओं में कुछ तकनीकी और प्रचलित शब्दावलियाँ भी शामिल हैं जो लोगों को आज के माहौल से जोड़ती हैं; सामयिकता को दर्शाती हैं।’’ 
जब आदिवासी गाता हैकाव्य-संग्रह के विमोचन के मौके पर डाॅ. जमुना बीनी ने कविताओं के प्रति अपने लगाव को साझा करते हुए कहा कि-‘आरंभिक दिनों में चंपक, नंदन को पढ़ते हुए हमने कथा-कहानियों, कविताओं में रस लेना सीखा। फिर छोटी-छोटी कविताएँ लिखने लगी और उन्हें प्रकाशित होने के लिए भेजने लगीं। काॅलेज की पत्रिकाओं के अलावे विश्वविद्यालय की पत्रिकाओं ख़ातिर भी लिखना जारी रखा। साहित्य की समझ धीरे-धीरे विकसित हुई। फिर प्रकाशित पत्रिकाओं को पढ़ने लगी और छपने लगी। पाठकों की प्रतिक्रियाओं ने मेरा हौंसला बढ़ाया।’’ अपने वक्तव्य में डाॅ. अभिेषेक कुमार यादव ने काव्य-संग्रह की कविताओं पर चर्चा करते हुए कहा कि-‘‘मौजूदा समय में आदिवासी जन-जीवन से लेकर उनका दर्शन तक रूपांतरित होता जा रहा है। इस मायने में जमुना बीनी की कविताएँ महत्त्वपूर्ण कही जानी चाहिए क्योंकि वे बिना उलझाव के सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को प्रकट करती हैं। ये कविताएँ जितना कह रही हैं उससे कहीं अधिक अनकहा छोड़ दे रही हैं। कई सारी कविताएँ करुण-आख्यान हैं जो एक-दूसरे से परस्पर अंतःसमन्वित हैं। कवयित्री असामान्य बदलावों के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करती हैं क्योंकि आधुनिक प्रवृत्तियाँ पारम्परिक चेतना को नष्ट करती हैं। यह रूपांतरण पलायन, विस्थापन, निर्वासन आदि में दर्ज होता है जिसमें त्रासदी है, संत्रास है।’’