Monday 30 January 2017

बहुत समझदारी का काम है अनुवाद

http://www.bbc.co.uk/academy/hindi/article/art20140610104823907

हिंदी पत्रकारिता में अनुवाद की बहुत ज़रूरत पड़ती है. मगर अनुवाद समझकर किया जाना चाहिए. उस भाषा से ऐसी झलक नहीं आनी चाहिए कि वो अनुवादित भाषा है. अनुवाद की भाषा सहज होनी चाहिए.

राजेश प्रियदर्शी, डिजिटल एडिटर, बीबीसी हिन्दी
हिंदी पत्रकारिता में अनुवाद बहुत बड़े पैमाने पर होता है, इतने बड़े पैमाने पर कि पत्रकार जब अनुवाद नहीं भी करते तो भी उनकी भाषा में कई बार अनुवाद वाला परायापन होता है. 
अच्छा अनुवाद क्या है—जिसमें अनुवाद वाला अटपटापन न हो, अधिक से अधिक लोगों तक बात पहुँच जाए, तथ्य और भाव न बदलें.
अच्छा अनुवाद करने के लिए दोनों भाषाओं का ज्ञान ही नहीं, दोनों भाषाओं की बारीक़ समझ ज़रूरी है, यह समझ ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ने से ही आती है. 
अनुवाद कभी शब्दों का नहीं, पूरी रिपोर्ट या लेख का करना चाहिए,  मतलब ये कि अनुवाद शुरू करने से पहले पूरे ऑरिजनल टेक्स्ट को पढ़ा जाना चाहिए ताकि उसका संदर्भ साफ़ हो जाए.
पत्रकारिता के अनुवाद का मतलब होता है, पढ़ना, समझना और फिर समझाना.
गाँठ बाँधने वाली बात ये है कि बिना ठीक से समझे अंदाज़ा लगाकर किए जाने वाले अनुवाद में ही सबसे भयंकर ग़लतियाँ होती हैं.
अगर पढ़ने, सुनने वाले को यह एहसास हो कि अनुवाद की हुई चीज़ परोसी जा रही है तो यह अनुवाद करने वाले की नाकामी है.
अगर आपके वाक्य,  मुहावरे और भाव हिंदी के अनुरुप नहीं हैं तो आपके काम से अनुवाद की बू आएगी, लिखने के बाद इस नज़र से एक बार ज़रूर पढ़ें कि भाषा बनावटी या अटपटी तो नहीं लग रही.
अँगरेज़ी में एक ही वाक्य में ढेर सारी जानकारियाँ हो सकती हैं, लेकिन हिंदी में ऐसा करना ज़रूरी नहीं है, वाक्य हिंदी के अनुरूप होने चाहिए न कि अँगरेज़ी की नकल.
इसके अलावा, अँगरेज़ी के जुमलों के भाव को ठीक से समझना चाहिए, वर्ना ग़लती होने का डर रहता है, मिसाल के तौर पर-- I can't thank you enough का अनुवाद 'मैं आपको बहुत धन्यवाद नहीं दे सकता' नहीं होगा, इसका मतलब है कि मैं आपको जितना धन्यवाद दूँ, कम ही होगा. इसके लिए हिेंदी में कहा जा सकता है--मैं किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूँ?
अँगरेज़ी के आम चलन और मुहावरों को न समझने की वजह से सबसे ज़्यादा ग़लतियाँ होती हैं, ‘डेडलाइन’ का मृतरेखा और ‘स्टेट ऑफ़ द आर्ट’  का अ्नुवाद कला की स्थिति इसी वजह से होता है.
ग़लती से, कैपिटल लेटर्स को नज़रअंदाज़ करके जगहों के नामों का अनुवाद करने पर ‘पोर्ट ऑफ़ स्पेन’, स्पेन का बंदरगाह बन सकता है.
इसी तरह उच्चारण न जानने पर शिकागो को चिकागो लिखने की भूल हो सकती है.

Thursday 26 January 2017

कमलेश्वर : परिचय आपसे

http://bharatdiscovery.org

पूरा नाम : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना
जन्म : 6 जनवरी, 1932
जन्मभूमि : मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु : 27 जनवरी, 2007
मृत्यु स्थान : फरीदाबाद, हरियाणा
कर्म-क्षेत्र : उपन्यासकार, लेखक, आलोचक, फ़िल्म पटकथा लेखक
मुख्य रचनाएँ : कितने पाकिस्तान, जॉर्ज पंचम की नाक, मांस का दरिया, इतने अच्छे दिन, कोहरा, कथा-प्रस्थान, मेरी प्रिय कहानियाँ,
भाषा : हिंदी
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य), इलाहाबाद विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि 2005 में पद्मभूषण, 2003 मेंसाहित्य अकादमी पुरस्कार (कितने पाकिस्तान)
प्रसिद्धि : उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया।
कहानी संग्रह : जॉर्ज पंचम की नाक, मांस का दरिया, इतने अच्छे दिन, कोहरा, कथा-प्रस्थान, मेरी प्रिय कहानियाँ
आत्मपरक संस्मरण : जो मैंने जिया, यादों के चिराग़, जलती हुई नदी
उपन्यास : एक सड़क सत्तावन गलियाँ, लौटे हुए मुसाफिर, डाक बंगला, समुद्र में खोया हुआ आदमी, तीसरा आदमी, काली आंधी, वही बात, आगामी अतीत, सुबह....दोपहर....शाम, रेगिस्तान, कितने पाकिस्तान
विशेष योगदान : इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के क्षेत्र में भी विशेष योगदान दिया।
अन्य जानकारी : ‘नई कहानियों’ के अलावा ‘सारिका’, ‘कथा यात्रा’, ‘गंगा’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन तो किया ही ‘दैनिक भास्कर’ के राजस्थान अलंकरणों के प्रधान सम्पादक भी रहे।
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कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फ़िल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने अनेक हिन्दी फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ लिखीं तथा भारतीय दूरदर्शन शृंखलाओं के लिए दर्पण, चन्द्रकान्ता, बेताल पच्चीसी, विराट युग आदि लिखे। भारतीय स्वातंत्रता संग्राम पर आधारित पहली प्रामाणिक एवं इतिहासपरक जन-मंचीय मीडिया कथा ‘हिन्दुस्तां हमारा’ का भी लेखन किया।
 
जीवन परिचय
पूरा नाम 'कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना' का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में 6 जनवरी, 1932 को हुआ था। प्रारम्भिक पढ़ाई के पश्चात कमलेश्वर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। कमलेश्वर बहुआयामी रचनाकार थे। उन्होंने सम्पादन क्षेत्र में भी एक प्रतिमान स्थापित किया। ‘नई कहानियों’ के अलावा ‘सारिका’, ‘कथा यात्रा’, ‘गंगा’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन तो किया ही ‘दैनिक भास्कर’ के राजस्थान अलंकरणों के प्रधान सम्पादक भी रहे। कश्मीर एवं अयोध्या आदि पर वृत्त चित्रों तथा दूरदर्शन के लिए ‘बन्द फ़ाइल’ एवं ‘जलता सवाल’ जैसे सामाजिक सरोकारों के वृत्त चित्रों का भी लेखन-निर्देशन और निर्माण किया।

कार्यक्षेत्र
'विहान' जैसी पत्रिका का 1954 में संपादन आरंभ कर कमलेश्वर ने कई पत्रिकाओं का सफल संपादन किया जिनमें 'नई कहानियाँ' (1963-66), 'सारिका' (1967-78), 'कथायात्रा' (1978-79), 'गंगा' (1984-88) आदि प्रमुख हैं। इनके द्वारा संपादित अन्य पत्रिकाएँ हैं- 'इंगित' (1961-63) 'श्रीवर्षा' (1979-80)। हिंदी दैनिक 'दैनिक जागरण'(1990-92) के भी वे संपादक रहे हैं। 'दैनिक भास्कर' से 1997 से वे लगातार जुड़े हैं। इस बीच जैन टीवी के समाचार प्रभाग का कार्य भार संभाला। सन 1980-82 तक कमलेश्वर दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक भी रहे। कमलेश्वर का नाम नई कहानी आंदोलन से जुड़े अगुआ कथाकारों में आता है। उनकी पहली कहानी 1948 में प्रकाशित हो चुकी थी परंतु 'राजा निरबंसिया' (1957) से वे रातों-रात एक बड़े कथाकार बन गए। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियों में 'मांस का दरिया,' 'नीली झील', 'तलाश', 'बयान', 'नागमणि', 'अपना एकांत', 'आसक्ति', 'ज़िंदा मुर्दे', 'जॉर्ज पंचम की नाक', 'मुर्दों की दुनिया', 'क़सबे का आदमी' एवं 'स्मारक' आदि उल्लेखनीय हैं।[1]

फ़िल्म एवं टेलीविजन
फ़िल्म और टेलीविजन के लिए लेखन के क्षेत्र में भी कमलेश्वर को काफ़ी सफलता मिली है। उन्होंने सारा आकाश, आँधी, अमानुष और मौसम जैसी फ़िल्मों के अलावा 'मि. नटवरलाल', 'द बर्निंग ट्रेन', 'राम बलराम' जैसी फ़िल्मों सहित 99 हिंदी फ़िल्मों का लेखन किया है। कमलेश्वर भारतीय दूरदर्शन के पहले स्क्रिप्ट लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने टेलीविजन के लिए कई सफल धारावाहिक लिखे हैं जिनमें 'चंद्रकांता', 'युग', 'बेताल पचीसी', 'आकाश गंगा', 'रेत पर लिखे नाम' आदि प्रमुख हैं। भारतीय कथाओं पर आधारित पहला साहित्यिक सीरियल 'दर्पण' भी उन्होंने ही लिखा। दूरदर्शन पर साहित्यिक कार्यक्रम 'पत्रिका' की शुरुआत इन्हीं के द्वारा हुई तथा पहली टेलीफ़िल्म 'पंद्रह अगस्त' के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। तकरीबन सात वर्षों तक दूरदर्शन पर चलने वाले 'परिक्रमा' में सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याओं पर खुली बहस चलाने की दिशा में साहसिक पहल भी कमलेश्वर जी की थी। वे स्वातंत्र्योत्तर भारत के सर्वाधिक क्रियाशील, विविधतापूर्ण और मेधावी हिंदी लेखक थे।[1]

प्रसिद्धि
उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया। हिन्दी में यह प्रथम उपन्यास है, जिसके अब तक पाँच वर्षों में,2002 से 2008 तक ग्यारह संस्करण हो चुके हैं। पहला संस्करण छ: महीने के अन्तर्गत समाप्त हो गया था। दूसरा संस्करण पाँच महीने के अन्तर्गत, तीसरा संस्करण चार महीने के अन्तर्गत। इस तरह हर कुछेक महीनों में इसके संस्करण होते रहे और समाप्त होते रहे।

सम्मान और पुरस्कार
कमलेश्वर को उनकी रचनाधर्मिता के फलस्वरूप पर्याप्त सम्मान एवं पुरस्कार मिले। 2005 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकरण से राष्ट्रपति महोदय ने विभूषित किया। उनकी पुस्तक ‘कितने पाकिस्तान’ पर साहित्य अकादमी ने उन्हें पुरस्कृत किया।

निधन
27 जनवरी, 2007 को फ़रीदाबाद, हरियाणा में कमलेश्वर का निधन हो गया।

Monday 23 January 2017

हिंदी लिखते मात्राओं की ग़लती से कैसे बचें?


https://educationmirror.org/2017/01/22/matra-ki-galti-kaise-sudharen-10-tips/

by Virjesh Singh
how-to-teach-hindi
भाषा शिक्षण के लिए दीवारों पर बना एक चित्र।
हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें किसी अक्षर या वर्ण के चारों तरफ मात्राएं लगती है। किसी वर्ण के ऊपर लगने वाली मात्रा को बच्चे'उपली मात्रा' कहते हैं। वहीं किसी वर्ण के नीचे लगने वाली मात्रा को बच्चे 'निचली मात्रा' कहते हैं।
इसी तरीके से किसी वर्ण के पहले लगने वाली मात्रा को 'छोटी मात्रा' और पीछे लगने वाली मात्रा को 'बड़ी मात्रा' कहते हैं, जिसे आवाज़ों के अंतर द्वारा स्पष्ट करके बच्चों को पढ़ना सिखाया जाता है। इसी तरीके से कुछ मात्राएं वर्णों के बीच में भी लगती हैं। जैसे क्रिया, रूपक इत्यादि।
अगर हम बच्चों से बात करें तो पहली-दूसरी कक्षा के बच्चे और उनको पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों के बारे में बताते हैं कि किस बच्चे को कैसी मात्राएं पढ़ने में दिक्कत हो रही है। बच्चे पढ़ते-पढ़ते बहुत सी मात्राएं सीख लेते हैं, जो शिक्षक ने नहीं सिखाई होती हैं। जैसे रूकना या रूपया जैसे शब्द में उ की मात्रा को बच्चे आसानी से पढ़ पाते हैं।
अगर हम सामान्य तौर पर हिंदी लिखते समय होने वाली गलतियों की बात करें तो अमूमन हम अपने लिखे तो दोबारा नहीं पढ़ते। इस कारण से होने वाली गलतियां हमारी आदत का हिस्सा बन जाती हैं। इस कारण से हम उनको देखकर भी अनदेखा कर जाते हैं। इससे बचने के लिए इन दस बातों का ध्यान रख सकते हैं

10 टिप्स

1.बोल-बोल कर लिखने की कोशिश करें

2. अपना लिखा किसी और को पढ़ने के लिए दें

3. लिखित सामग्री को ग़ौर से पढ़ने की आदत डालें

4. अपने लिखे को दोबारा पढ़ें

5. अगर किसी शब्द के बारे में कोई उलझन हो तो शब्दकोश की मदद लें या गूगल सर्च करें

6. शब्दकोश डॉट कॉम जैसे विकल्प का इस्तेमाल ऑनलाइन कर सकते हैं

7. मात्रा लगने से किसी वर्ण की ध्वनि में बदलाव होता है, लिखते समय इस बात का ध्यान रखें। लिखित सामग्री को पढ़कर आप पता लगा लेंगे

8. हिंदी भाषा में मात्राओं की ग़लती से बचने का सबसे सुंदर उपाय छोटे बच्चों को पढ़ाना है ताकि आप खुद भी उनकी परेशानी को समझ पाएंगे। अपने लिए भी समाधान खोज पाएंगे।

9. पहली-दूसरी कक्षा की हिंदी की किताबों को फिर से पढ़ सकते हैं। छोटे बच्चों के लिए सुलेख और श्रुतलेख वाले विकल्प से काफी मदद मिलती है।

10. आखिर में सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मात्राओं की गलती पर ध्यान देना जरूरी है, मगर विचारों की स्पष्टता और कंटेंट को अनदेखा करना भी ठीक नहीं है। इसलिए व्याकरण के साथ-साथ कहने वाली बात के ऊपर भी ध्यान दें।

Saturday 21 January 2017

कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer)

http://ravindrakmp.blogspot.in/2012/03/history-of-computer.html

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दुनिया भर में अब तक के ज्ञात श्रोतों के आधार पर ये पाया गया है की शुन्य की खोज और प्रयोग का सर्वप्रथम प्रमाणित उल्लेख भारत के प्राचीन विख्यात खगोल शास्त्री और गणितज्ञ आर्यभठ्ठ के द्वारा रचित उनके गणितीय खगोलशास्त्र ग्रंथ" आर्यभठ्ठीय" के संख्या प्रणाली में लेखों में शून्य के विशिष्ट संकेत मिलते है सबसे पहले इनके ग्रन्थ में ही शून्य को सम्मिलित किया गया था बस तभी से संख्याओं को शब्दों के रूप में प्रदर्शित करने के प्रचलन आरम्भ हुआ।
एक भारतीय लेखक जिनका नाम पिंगला था उन्होंने (200 ई.पू.) में छंद आपने शास्त्र का वर्णन करने के लिए, आर्यभट्ट द्वारा विकसित गणितीय प्रणाली को विकसित किया था और दो आधारीय अंक प्रणाली बाइनरी नंबर प्रणाली (०,१) का सर्वप्रथम ज्ञात विवरण प्रस्तुत किया गया | इन जादुई अंको (० और १ ) का ही प्रयोग प्रथम कम्प्यूटर की संरचना के लिए मुख्य रूप से किया गया था। आज की कम्प्यूटर शब्द का प्रयोग आधुनिक कंप्यूटर के निर्माण से बहुत पहले से ही होता रहा है। पहले सामान्य में जटील गणनाओं को हल करने में उपयोग होने वाली मशीनों को संचालित करने वाले विशेषज्ञ व्यक्ति को ही "कंप्यूटर" नाम से पुकारा जाता था| ऐसे कठिन अंकगणित के सवाल जिनको हल करना बहुत मुश्किल और अधिक समय लेने वाला होता था। इन सवालो को हल करनें के लिए विशिष्ठ प्रकार की मशीनों का आविष्कार किया गया समय के साथ-साथ इन मशीनों में अनेक प्रकार के बदलाव तथा सुधार किये गए। जब जाकर आधुनिक कंप्यूटर का वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ ये ये ही आधुनिक कंप्यूटर आविष्कार का प्रारंभिक क्रम था। लगभग ३००० ई.पु. में अबेकस (ABACUS) नामक गणना करने वाले एक विचित्र यन्त्र का उल्लेख मिलता है ये माना जाता है की इस यंत्र का अविष्कार चीन में हुआ था। ABACUS नमक यंत्र में कई छडें होती थी जिनमें कुछ गोले के आकर की रचनाये होती थी। जिनके माध्यम से जोड़ और घटने का कार्य किया जाता था। परन्तु इनसे अबेकस के द्वारा गुणन और विभाजन का कार्य नहीं किया जा सकता था। ये भी कंप्यूटर के विकास क्रम का एक भाग है। |
१६०० ई० से लेकर 1970 ई० के बिच का समय कंप्यूटर के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। जिस दौरान अनेक अविष्कार हुए जिनका सम्बन्ध कंप्यूटर विकास से है। जो कि निम्नप्रकार है।

(१) १६२२ ई० में महान विशेसज्ञ विलियम औघ्त्रेड ने एक यंत्र का निर्माण किया जिसे "स्लाइड रुल" के नाम से जाना जाता है।
(२) १६४२ ई० में महान वैज्ञानिक ब्लैज पास्कल नें "पास्कलिन" नमक एक यन्त्र का निर्माण किया जिसके द्वारा जोड़ने और घटना का कार्य किया जा सकत था।
 
(३) Leibniz's Stepped Reckoner or Stepped Reckoner:-
१६७२ ई० में गॉटफ्रीएड विल्हेल्म लाइब्निज़ (Gottfried Wilhelm Leibniz ) नमक वैज्ञानिक नेंलाइब्निज़ स्टेप रेकॉनर (Leibniz Step Reckoner or Stepped Reckoner) नामक एक कैलकुलेटर मशीन का निर्माण किया जिसके द्वारा जोड़, घटाना, गुना तथा भाग सभी प्रकार की गणनाएं करना सम्भवहुआ था।
(४) Difference Engine:-
१८२२ ई० में प्रसिद्ध वैज्ञानिक चार्ल्स बैबेज नें एक विचित्र विचित्र मशीन "डिफरेंशिअल इंजन" का निर्माण किया और फिर १८३७ ई० में एक और मशीन "एनालिटिकल इंजीन" का अविष्कार किया था जिसे वे धन की कमी के कारण पुरा नहीं कर सके थे। ये माना जाता है कि तभी से आधुनिक कंप्यूटर की शुरुवात हुई थी। इसी लिए वैज्ञानिक "चार्ल्स बैबेज" को "आधुनिक कंप्यूटर का जनक "कहाँ जाता है।
(५) Konrad Zuse - Zuse-Z3 Machine 
१९४१ ई० में महान वैज्ञानिक "कोनार्ड जुसे" नें "Zuse-Z3" नमक एक अदभुत यंत्र का आविष्कार किया जो कि द्वि-आधारी अंकगणित की गणनाओ (Binary Arithmetic) को एवं चल बिन्दु अंकगणित गणनाओ (Floating point Arithmetic) पर आधारित सर्वप्रथम Electronic Computer था।

(6) Eniac:-
१९४६ में अमेरिका की एक सैन्य शौध शाला ने "ENIAC" (Electronic Numerical Integrator And Computer) नमक मशीन का निर्माण किया। जो कि दाशमिक अंकगणितीय प्रणाली (Decimal Arithmetic system ) संरचना पर आधारित था ये मशीन ही आगे चलकर सर्वप्रथम कंप्यूटर के रूप में प्रसिद्ध हुई जो कि आगे चलकर आधुनिक कंप्यूटर के रूप में विकसित हुई और आधुनिक कंप्यूटर के विकास का आधारबना।


(7) Manchester Small-Scale Experimental Machine 
वर्ष १९४८ में Manchester Small-Scale Experimental Machine नाम का पहला ऐसा कंप्यूटर बनाया गया जो कि किसी भी प्रोग्राम को Vaccum Tube में संरक्षित (Save ) कर सकता था।


१. पहली पीढ़ी ( 1940-1956): - वैक्यूम ट्यूब
प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर में सर्वप्रथम वैक्यूम ट्यूब (Vacume Tube) नामक तकनीक का प्रयोग किया गया था। इन वेक्यूम ट्यूब की वजह से इन कंप्यूटर आकर बहुत बड़ा हो गया था। इनका आकर एक कमरे के जितना बड़ा था। कंप्यूटर का आकर बड़ा होने के कारण इन कंप्यूटर को चलने में बिजली की बहुत अधिक खपत होती थी। ये वेक्यूम ट्यूब बहुत ज्यादा गर्मी पैदा करती थी तथा इन वैक्यूम ट्यूब की टूट फुट की सम्भावना अधिक रहती थी। प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर में ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं होता था। इन कंप्यूटर में प्रोग्राम को पंचकार्ड नामक डिवाइस में स्टोर किया जाता था। इन कंप्यूटर्स में गणना करने की क्षमता बहुत कम थी। इन कंप्यूटर्स में डाटा को स्टोर करने की क्षमता बहुत सिमित हुआ करती थी। इन कंप्यूटर्स में मशीन भाषा का प्रयोग किया जाता था-यूनिवेक तथा ENIAC कंप्यूटर पहली पीढ़ी के कंप्यूटर मशीनों उदाहरण है जिसे 1945 में बनाया गया था। ENIAC कंप्यूटर का वजन 30 टन के लगभग था। इसमें 18000 वेक्यूम ट्यूब्स, 1500 रिले, हजारो रजिस्टेंस और कैपिस्टर्स का प्रयोग किया गया था। इसके संचालन में 200 किलोवाट बिजली का उपयोग किया जाता था। यूनिवेक पहला कॉमेरशल कंप्यूटर (Comercial Computer ) माना जाता। है जिसे 1951 में अमेरिकी जनगणना के लिए प्रयोग किया गया था।

दूसरी पीढ़ी (1956-1963) :- ट्रांजिस्टर का प्रयोग 
१९४७ में ट्रांजिस्टर की खोज के साथ ही कंप्यूटर युग में एक क्रांति गयी। अब कंप्यूटर में वेक्यूम ट्यूब के स्थान पर ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया जाने लगा। ट्रांजिस्टर का आकर वेक्यूम ट्यूब की अपेक्षा बहुत ही छोटा होता था। जिसके कारण ये काम स्थान घेरते थे। ये वेक्यूम ट्यूब की तुलना में सस्ते होते थे। और ट्रांजिस्टर की कार्य क्षमता भी अधिक थी। ये कम गर्मी पैदा करते थे। इनके प्रयोग से कंप्यूटर का आकर प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर की तुलना में बहुत छोटा हो गया था। इन कंप्यूटर को चलने के लिए कम बिजली की आवश्यकता होती थी। ये कंप्यूटर प्रथम पीढ़ी के मुकाबले अधिक तेज थे। इन कंप्यूटरो में मेमोरी के लिए मेग्नेटिक ड्रम के स्थान पर अब मेग्नेटिक कोर का प्रयोग किया गया था। कंप्यूटर्स में सेकंडरी स्टोरेज के लिए पंचकार्ड के स्थान पर मेग्नेटिक टेप और डिस्क का प्रयोग किया जाने लगा था। इस पीढ़ी में FORTRAN, COBOL जैसी High Level Language का अविष्कार हुआ इन Lenguages में English के अक्षरो का प्रयोग किया गया था।


तीसरी पीढ़ी (1964-1971):- एकीकृत परिपथों (Integrated Circuit)
एकीकृत परिपथ (Integrated Circuit) या I.C.  के विकास के साथ ही आधुनिक कंप्यूटर की तीसरी पीढ़ी का जन्म हुआ। इन कंप्यूटर्स में अब ट्रांजिस्टरों का स्थान इंटीग्रेटिड सर्किट (I.C.) ने ले लिया था। I.C. बहुत सारे ट्रांजिस्टरों, रजिस्टरों और केपिस्टरो का संग्रहित रूप होता है जिसमे बहुत सरे रांजिस्टरों, रजिस्टरों और केपिस्टरो एकत्र करके एक सूक्ष्म डिवाइस का निर्माण किया जाता है। I.C. सिलिकॉन नामक पदार्थ से बनायीं जाती है इसमें लोहा, एल्युमीनियम , पोटेशियम जैसे पदार्थ होते है जो इसके कार्यछमता को कई गुना बढ़ा देते है।   I.C. के प्रयोग से आधुनिक कंप्यूटर एक कमरे से निकलकर अब एक टेबल पर आ गया था।  अर्थात कंप्यूटर का रूप छोटा हो गया था। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स में अब ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग किया जाने लगा था। जिसके कारण कंप्यूटर अधिक तेज हो गया और इसके आंतरिक कार्य स्वचालित हो गये। इसके साथ ही हाई लेवल लेंगुएज में अब नयी नयी भाषाओ का विकास होने लगा जैसे कि BASIC जिसका पूरा नाम (Beginners All Purpose Symbolic Instruction Code). था। इस पीढ़ी में ही मिनी कंप्यूटर का भी विकास हुआ जो पुराने कंप्यूटर के बहुत छोटा था। इन कंप्यूटर्स में डाक्यूमेंट्स बनाना और सेव करना बहुत आसान हो गया था।
  
चौथी पीढ़ी - (1971 से अब तक) - वर्तमान: माइक्रोप्रोसेसरों 

सबसे पहले माइक्रोप्रोसेसर का आविष्कार १९७० में हुआ था। माइक्रोप्रोसेसर के निर्माण के  साथ ही कंप्यूटर युग में एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी बदलाव हुआ अब I.C. का स्थान माइक्रोप्रोसेसर हे ले लिया था। माइक्रोप्रोसेसर जिसे Large Scale Integrated Circuit के नाम  दिया गया माइक्रोप्रोसेसर में एक छोटी सी चिप में लाखो ट्रांजिस्टरों को सूक्ष्म रूप से समाहित किया गया लाखो ट्रांजिस्टरों से निर्मित इस चिप को ही माइक्रोप्रोसेसर नाम दिया गया। माइक्रोप्रोसेसर के प्रयोग से निर्मित कंप्यूटर को माइक्रो कंप्यूटर कहा जाने लगा था। दुनिया का सबसे पहला माइक्रो कम्प्यूटर MITS नाम की प्रसिद्ध कंपनी ने बनाया था।
इंटीग्रेटेड सर्किट I.C. की खोज से ही आगे चलकर माइक्रोप्रोसेसर के आविष्कार का रास्ता साफ हुआ। माइक्रोप्रोसेसर के आविष्कार  से पहले C.P.U. अलग-अलग कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को जोड़कर बनाए जाते थे।
आज दुनिया में दो बड़ी माइक्रोप्रोसेसर बनाने वाली कंपनिया Intel और AMD है। 
इस पीढ़ी में अब कोर मेमोरी  स्थान  सेमीकंडक्टर पदार्थ से बानी मेमोरी का प्रयोग किया जाने लगा। जो आकर में बहुत छोटी और इसके गति बहुत तेज होती थी।  इस पीढ़ी में अब डेटाबेस कार्य करने के लिए सरल सॉफ्टवेयर का निर्माण आरम्भ हो गया था। जैसे :- स्प्रेडशीट आदि।

पांचवीं पीढ़ी - (वर्तमान) :- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस



पांचवीं पीढ़ी के कंप्यूटर बहुत ही विकसित और कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ) टेक्नोलॉजी पर आधारित है। इस जनरेशन के कम्प्यूटर्स में खुद  की क्षमता विकसित की जा रही है। अब कम्प्यूटर सभी प्रकार के क्षेत्र में काम करने के लिए विकसित किया जा रहा है। आज के कम्प्यूटरो को सूचनाओ के आदान प्रदान के लिए इन्टरनेट केमाध्यम से नेटवर्को से जोड़ा जा रहा है।  आज कंप्यूटर का आकार दिन प्रतिदिन छोटो होता जा रहा है।  आज कम्प्यूटर टेबल से उठकर इन्सान की हथेली पर आ गया है।  और कंप्यूटर के आकारो के नाम पर कॉम्प्यूटर को नाम दिए जा रहे है। जैसे - डेस्क टॉप, लैप टॉप, पाम टॉप आदि।  आज कुछ कंप्यूटर विज्ञानं की शाखाए मनुष्य की तरह व्यव्हार करने वाले कम्प्यूटर्स का निर्माण कर रही है।  जिन्हें रोबोट कहाँ जाता है। मल्टीमीडिया  टेक्नोलॉजी का निर्माण भी  पीढ़ी में हुआ जिसमे मुख्य रूप से चित्र (Graphics), ध्वनि (Sound), तथा एनिमेशन आदि है।