Monday 7 November 2016

टिप्पण (Noting)


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        टिप्पण लेखन या टीप लेखन प्रारूप रचना का प्रमुख अवयव है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कार्यालय में आए हुए किसी भी विचाराधीन पत्र के संबंध में अंतिम निस्तारण के लिए लिखित या मौखिक कार्यवाही की जाती है। टिप्पण प्रायः प्रत्येक सरकारी कार्यालय की कार्य निपटान की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग है। 

परिभाषाः 
1.कमल कुमार बोस के मतानुसार- टिप्पण विचाराधीन पत्रों के संबंध में अपनायी जाने वाली वह सारगर्भित क्रिया-प्रक्रिया है जिससे उनका निस्तारण होता है।

2.प्रो.सूर्यप्रसाद सिंह और डॉ.योगेन्द्र प्रताप सिंह टिप्पण और टिप्पणी में अंतर बताते हुए लिखते हैं- टिप्पण (Noting) एक प्रक्रिया है और टिप्पणी (Note) उस प्रक्रिया का परिणाम है। टिप्पणी वह अभ्युक्ति या आख्या है जो किसी पत्रावली के निस्तारण के लिए लिखी जाती है, परंतु टिप्पण अभ्युक्ति या आख्या लिखने की कला है।

3.डॉ.लक्ष्मीकांत पांडेय और डॉ.प्रमिला अवस्थी के मतानुसार- सरकारी कामकाज में कार्यालयों में जो पत्र-व्यवहार या कार्यवाही होती है उसके लिए लिखित आदेश या निर्णय लिए जाते हैं। अतः उन विषयों को सम्बद्ध विषय की पत्रावली में एक लेख लिखकर उस पर संबद्ध अधिकारी के निर्देश, आदेश या निर्णय प्राप्त किए जाते हैं। यह कार्य अधीनस्थ कर्मचारी या अधीनस्थ अधिकारी करता है और अपने से वरिष्ठ अधिकारी के आदेश प्राप्त करता है। इसे टिप्पण कहते हैं।

4.कार्यालय में किसी पत्र के प्राप्त होते ही उस पर जो कार्यवाही का एक सिलसिला शुरू होता है जो उसके अंतिम रूप से निपटारे तक चलता है। यह कारवाई टिप्पण कार्य कहलाती है। इस कार्य के हर चरण में दिए गए सुझाव, संकेत, निर्देश, दर्ज किए गए तथ्य, सूचनाएँ आदि टिप्पणी कहलाती हैं।

5.टिप्पणियाँ वे बातें हैं जो विचाराधीन कागजों के बारे में इसलिए लिखी जाती हैं कि मामले को निपटाने में सुविधा हो।

6.टिप्पणी का उद्देश्य उन बातों को, जिन पर निर्णय करना होता है, स्पष्ट रूप से तथा तर्कानुसार प्रस्तुत करना है। साथ ही उन बातों की ओर भी संकेत करना है जिनके आधार पर उक्त निर्णय लिया जा सकता है।

7.टिप्पण तटस्थ बाव से और अन्य पुरूषों में लिखा गया एक ऐसा मंतव्य है जिसमें लेखक विचाराधीन नीति, योजना, समस्या, प्रश्र अथवा प्रकरण के पूर्वापर से संबद्ध आदेशादि का परीक्षण कर एवम् तद्विषयक कानूनी आर्थिक तथा व्यावहारिक पहलुओं के पक्ष-विपक्ष पर सोच-विचार कर कार्रवाई करने हेतु आंशिक या पूर्ण स्पष्टीकरण, टिप्पणी, सुझाव, आदेश, अनुदेशादि प्रस्तुत करता है। कार्यालय में जो पत्र प्राप्त होते हैं उनके विषय में पहली टिप्पणी संबंधित अधिकारी की होती है। वह पत्र का सारंश देते हुए बताता है कि उसमें दिए गए तथ्य योग्य है या नहीं। यदि कोई बात गलत है तो वह क्या है? उस मामले में यदि पहले कोई पत्र-व्यवहार हो चुका हो तो उसका सार भी वह टिप्पणी में देता है। इसके बाद वह कानूनों, नियमों, नीतियों और पहले लिए गए निर्णयों का उल्लेख करता है जिनके अनुसार पत्र पर निर्णय लेना उचित होगा। अंत में उस विषय में जिन मुद्दों पर निर्णय अपेक्षित हो उनकी चर्चा होती है और यदि हो सके तो निर्णय की दिशा का भी संकेत होता है। अंत में सहायक बायीं ओर हस्ताक्षर करता है और फाइल अनुभाग अधिकारी को प्रस्तुत करता है।

किसी प्रश्र पर निर्णय केवल मौखिक चर्चा के बाद भी लिया जा सकता है, किन्तु टिप्पणी एक स्थायी रिकार्ड होती है जिसे जरूरत पड़ने पर प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है। फाइल पर हुई टिप्पणी देख कर यह बताया जा सकता है कि कोई निर्णय कब और किन परिस्थितियों में लिया गया तथा किन नियमों और विचारों के अंतर्गत लिया गया?


टिप्पणी की विशेषताएँ-

1. टिप्पणी में संक्षेप में और प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि अधिकारी के पास बहुत विस्तृत टिप्पणी पढ़ने का समय नहीं होता। 2. सुस्पष्टता टिप्पणी की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। टिप्पणी में द्विअर्थक, अनेकार्थक या भ्रमात्मक शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। 3. टिप्पणी में किसी अधिकारी या संस्था या अन्य किसी व्यक्ति के प्रति कोई व्यक्तिगत आक्षेप नहीं होना चाहिए। 4. टिप्पणी में वैचारिक स्तर पर एक पूर्वापर क्रम होना चाहिए यानी पिछला संदर्भ, प्रस्तुत प्रश्र की चर्चा और भावी कार्यवाही की सुझाव। 5. टिप्पणी की भाषा मर्यादित, शिष्ट, शालीनतापूर्ण एवम् संयत होनी चाहिए। उसमें अलंकार, मुहावरे, कहावतों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। 6. टिप्पणी करते समय पत्र में बताई गई समस्या के हल के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प की ओर संकेत करना चाहिए। यह हल अपने आप में पूर्ण होना चाहिए। 7. टिप्पणी में उन्हीं बातों का उल्लेख होना चाहिए जिन पर निर्णय लिया जाना हो। 8. टिप्पणी करते वक्त मैं, हम, हमने, मैंने आदि शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए बल्कि इसके विपरीत अन्य पुरूष का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि टिप्पणी वैयक्तिक न होकर वस्तुनिष्ठ होती है। 9. टिप्पणी के खत्म होने पर नीचे बायीं तरफ टिप्पणीकार के लघु हस्ताक्षर होने चाहिये ताकि यह आसानी से पता चले कि किस सहायक अथवा कर्मचारी के द्वारा टिप्पणी लिखी गई है। 

टिप्पण के प्रकारः

1.सूक्ष्म टिप्पणः कार्यालय में कुछ पत्र पर अनुभाग अधिकारी बायीं ओर हाशिये पर निर्देश देता है। ये निर्देश संक्षिप्त होते हैं। उन्हें सूक्ष्म टिप्पण कहा जाता है। सूक्ष्म टिप्पण में सामान्य रूप से अवलोकनार्थ, सम्मति हेतु, स्वीकृति हेतु आदि वाक्य लिखे जाते हैं। अधिकारी भी अवलोकन किया, ठीक है, देख लिया आदि वाक्य लिख कर लौटा देता है।


2.संपूर्ण टिप्पणः किसी भी विषय या मसले के संबंध में किया गया वह टिप्पण कार्य जिससे पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाती है, उसे संपूर्ण टिप्पण कहा जाता है। प्रायः किसी उलझे हुए, विवादाग्रस्त विषय के लिए इस प्रकार की टिप्पणी की जाती है। इसके अंतर्गत पत्र की पृष्ठभूमि, पुरानी पत्रावली, नियम, उप नियम, पहले किए गए निर्णय, तर्क सहित सुझाव, न्यायिक आदेश आदि से पूर्ण टिप्पण प्रस्तुत की जाती है। 

3.अनुभागीय टिप्पणः कभी-कभी ऐसी स्थिति आती है कि एक ही कार्य के लिए अलग-अलग अनुभागों एवम् विभागों से अनुमति लेनी पड़ती है। इसके लिए संबंधित पत्रावली विभिन्न अनुभागों में टिप्पणी के लिए भेजा जाता है। सभी जगहों से टिप्पण प्राप्त हो जाने के बाद कार्य या माँग के अनुसार संपूर्ण टिप्पण तैयार किया जाता है।

4.नेमी टिप्पणः कार्यालय के दैनिक कार्यों की पूर्ति के लिए नेमी टिप्पण लिखे जाते हैं। ये संक्षिप्त रूप में छोटी-छोटी बातों के लिए लिखे जाते हैं।

5.अनौपचारिक टिप्पणः अनौपचारिक टिप्पण एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय अथवा एक विभाग से दूसरे विभाग को कुछ जानकारियाँ देने के लिए सीधे भेजे जाते हैं। इनमें कार्यालयीन नियमों का सही-सही पालन नहीं होता। इनके उत्तर में जो टिप्पणियाँ आती हैं, वे संक्षिप्त होती हैं, इसे ही अनौपचारिक टिप्पण कहते हैं।

6.नैत्य टिप्पणः किसी विचाराधीन पत्र के संबंध में, जिन्हें टिप्पणी भेजी जानी हो, उस अधिकारी का ध्यान आकर्षित करने के लिए, ऐसे तथ्यों को एक अलग कागज पर लिखकर टिप्पणी के साथ जोड दिया जाता है। बाद में इस कागज को फाइल से निकाल लिया जाता है। इसे ही नैत्यक टिप्पण कहा जाता है।

7.नित्यक्रमिक टिप्पणः ऐसी छोटी-छोटी टिप्पणियाँ जिनका कार्यालय में अधिकतर प्रयोग होता है, परंतु जिनका कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता, नित्यक्रमिक टिप्पण कहलाती हैं। इसमें पत्र पर ही टिप्पण कार्य कर दिया जाता है।

8. अनुवर्ती टिप्पणः टिप्पण कार्य पत्र पर पूर्ण न हुआ हो तब पत्र के साथ अनुवर्ती पत्र लगाया जाता है और तब जो टिप्पण की क्रिया की जाती है, उसे अनुवर्ती टिप्पण कहते हैं।

टिप्पण का उद्देश्य-
1.प्राप्त पत्र में दिए गए विषय पर सभी तथ्यों और उनके पूर्ववृत्त की जानकारी संबंधित अधिकारी को देना। 2.प्रस्तुत विषय में जो भी कार्यवाही संभव हो अथवा विकल्प संभव हो उनको स्पष्ट करना। ऐसा करते समय संगत नियमों का हवाला देना। 3.यह संकेत करना कि उन विकल्पों में से किसे चुनना योग्य होगा। इस तरह के संकेत देते हुए योग्य तर्क प्रस्तुत करना जिससे कि संबद्ध अधिकारी सारी बात को, समस्या को पूरी तरह समझ सके। संक्षेप में, टिप्पणी में संबद्ध विषय की पिछली जानकारी भी होती है और आगे समाधान के लिए सुझाव भी। इस समस्त पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए अधिकारी को निर्णय लेने में सुविधा होती है। 

4 comments:

  1. टिप्पण लेखन की प्रक्रिया को समझाते हुए इसमें प्रयुक्त होने वाले वाक्वांशो का परिचय दीजिए

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  2. उदाहरण दिया गया होता तो शायद और स्पष्ट हो पाता. इस पर विचार करें

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