Tuesday, 14 November 2017

कार्नेलिया सोराबजी : गूगल ने इस अंदाज में किया याद, देश की पहली महिला बैरिस्टर

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https://khabar.ndtv.com https://unmukth.wordpress.com से साभार


भारत की पहली महिला बैरिस्टर कार्नेलिया सोराबजी का आज 151वां जन्मदिवस है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है. कार्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर 1866 को नासिक में हुआ था. सोराबजी समाज सुधारक होने के साथ-साथ एक लेखिका भी थीं. कार्नेलिया 1892 में नागरिक कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गयीं और 1894 में भारत लौटीं. उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था. लेकिन कार्नेलिया तो एक जुनून का नाम था. अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को कानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की मांग उठाई.



खास बातें

  1. कार्नेलिया सोराबजी को गूगल ने डूडल बनाकर किया याद
  2. सोराबजी को भारत की पहली महिला बैरिस्टर होने का प्राप्त है गौरव
  3. सोराबजी का आज 151वां जन्मदिवस है
अंतत: 1907 के बाद कार्नेलिया को बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया. एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया. 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं. 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय – क्रॉर्नीलिआ सोरबजी (Cornelia Sorabjee)
क्रॉर्नीलिआ सोरबजी, एक पारसी महिला थीं। उनका भाई बैरिस्टर था और वह इलाहाबाद वकालत करने आया। वह उसी के साथ उसके घर का रख-रखाव करने आयीं। उन्हें वकालत का पेशा अच्छा लगा और उन्होंने वकालत करने की ठानी। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सामने अपना आवेदन पत्र वकील बनने के लिये दिया जो पहले खारिज कर दिया गया पर उनका १ अगस्त १९२१ को वकील की तरह नामित करने के लिये दिया गया आवेदन पत्र, ९ अगस्त १९२१ में स्वीकार हुआ। यह नामांकन उच्च न्यायालय की इंगलिश (प्रशासनिक) बैठक में हुआ था इसलिए यह प्रकाशित नहीं है पर पटना उच्च न्यायालय के द्वारा दिये गये फैसले में इसका तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले का संदर्भ कुछ इस तरह से उल्लिखित है।
‘A recent instance has been brought to our notice where a lady (Miss Sorabjee) has been enrolled as a vakil of the Allahabad High Court. This was done by a decision of the English meeting of the Court consisting of the Chief Justice and the Judged present in Allahabad, under R.15 of Chap.XV of the Allahabad High Court Rules. In matters of practice, however, we generally follow the tradition of the Calcutta High Court and we do not think that we can deviate from the decision of that Court passed on the 29th of August 1916 in Regina Guha’s case only a few months after the creation of our High Court.
No doubt, the recent admission of Miss Sorabjee in the Allahabad High Court might create some anomaly, inasmuch as ladies enrolled as vakils in the Allahabad High Court may claim to practise in occasional cases in the Courts subordinate to this Court under Sec.4 of the Legal Practitioners Act, although no lady will be permitted to be enrolled in our own High Court. This again is a very good ground for changing the present law.’
क्रॉर्नीलिआ सोरबजी ‘व्यक्ति’ शब्द के अन्दर नामांकित होने वाली भारत की ही पहली महिला नहीं, बल्कि व्यक्ति खण्ड के अधीन दुनिया में कहीं भी नामांकित होने वाली पहली महिला थीं। दक्षिण अफ्रीका का मात्र एक पहला मुकदमा ज्यादा दिन तक नहीं चला। वह उसी वर्ष निरस्त कर दिया गया । क्रोनीलिआ से पहले भी कई महिलायें नामांकित हुई हैं लेकिन वे विशेष कानून की वजह से हुआ था जिसमें महिलाओं को वकील बनने का अलग से अधिकार दिया गया था।
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सुश्री सुपर्णा गुप्तू (Suparna Gooptu) ने क्रॉर्नीलिआ सोरबजी की जीवनी Cornelia Sorabjee – India’s Pioneer Woman lawyer नाम से लिखी है इसे Oxford University Press ने प्रकाशित किया है। इसमें वे कहती हैं कि क्रॉर्नीलिआ सोरबजी समाज सेविका तो थी पर वे अंग्रेजी हूकूमत की समर्थक भी थी। इस पुस्तक में लिखा है कि वे ३० अगस्त को १९२१ को नामांकित की गयी थीं तथा यहां लिखा है कि वे २४ अगस्त को नामांकित की गयी थीं पर शायद दोनो बात सही नहीं हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की इंगलिश (प्रशासनिक) बैठक जिसमें उनका आवेदन पत्र स्वीकार किया गया वह ९ अगस्त १९२१ को हुई थी पर उच्च न्यायालय ने क्रॉर्नीलिआ सोरबजी को इस बात के लिये पत्र दिन्नाक ३० अगस्त १९२१ को भेजा था। यह तारीख महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि चाहे जो भी तारीख हो वे इस तरह की पहली महिला थीं।
वर्ष 1954 में कार्नेलिया की मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है.

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