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समय की कमीनगी यह है कि हमारे दिलों में साहित्य की जगह कम रही है। तब भी कुछ तो ईमान बचाए रखे पत्रकार हैं जिन्हें साहित्य में रचनाकार की जीवटता और उसकी जनपक्षधर कार्रवाई का भान है। अपने समाचार-पत्र के पन्ने पर जिसने जहाँ और जितनी भी जगह दी...तारीफ़ के काबिल।
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