Thursday 8 November 2018

तुम्हारा यह स्कूल ड्रेस

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हजारों साल की यातनाओं का दर्द उभारता है तुम्हारा स्कूल ड्रेस 
दुर्ग की मजबूत दीवारों में कैद नहीं थी किताबें
पोथियाँ कैद नहीं रह सकती किसी कैदखाने में
वह तो हमारी जाति थी जिसके लिए दुर्ग की मजबूत दीवारें थीं
बुर्ज पर प्रहरी थे और उनके खतरे की घंटी हमारे खिलाफ़ बजती थी

एक रंग इतिहास की सैकड़ों परतों को उघाड़ सकता है
इसका उदाहरण है तुम्हारा स्कूल ड्रेस
एक आकृति हजारों स्मृतियों से संवाद कर सकती है
इसका उदाहरण है तुम्हारा स्कूली झोला
आज जब तुम स्कूल जाती हो
तो लगता है यातनाओं का दर्द कम हो रहा है
आसुंओं की नमी अब कुछ पतली हो चली है
तुम घर की चौखट से ऐसे निकलती हो
जैसे सूरज का रथ निकल रहा हो अँधेरे के खिलाफ
तुम न सिर्फ चौका बर्तन धो जाती हो
बल्कि उन अँधेरे कमरों को भी बुहार जाती हो
जो हमारे ही घरों में पुरुषों की सोच में कहीं टंगा होता है
तुम्हारा यह स्कूल ड्रेस
हजारों साल की प्रतीक्षा का आविष्कार है
यह उस गरिमा का प्रतीक है
जिसे हर देह में होना चाहिए
इसे इस्तेमाल किया जाना चाहिए
हर तरह के अपमान और गरीबी के खिलाफ
सत्ताओं के खिलाफ तो
इससे बेहतर और कोई दूसरा हथियार हो नहीं सकता
इसके आविष्कारकों ने यही कहा है
तुम्हारा यह स्कूल ड्रेस जितना सौम्य और शालीन है
यह उतना ही ताकतवर है
इसे बुनकरों ने कटी हुए अंगुली
और जली हुई रोटी से सेंक कर बुना है
तुम दूर नहीं हो सकती कभी इनकी कारीगरी से
यह इतिहास है तुम्हारे होने का
तुम जाओ और फ़ैल जाओ
चहकती हुई इस दुनिया की रस्मों-रिवाज पर
यातनाओं के हर रूप को मिटा दो
उस आँख की स्याही से इबारत लिख डालो
जो अब तक मेरे सीने में कसमसाती रही है |
अनुज लुगुन २/११/१८
(फेसबुक से साभार!)

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