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राष्ट्रीय सेमिनार में पढ़े गए परचे की सारांशिका और पाॅवर-प्वाइंट प्रजेंटेशन
24/11/2017
राष्ट्रीय सेमिनार में पढ़े गए परचे की सारांशिका और पाॅवर-प्वाइंट प्रजेंटेशन
24/11/2017
कौशल-विकास में ‘भाषा-बहती नीर’ की भूमिका और उच्च शिक्षा
§ राजीव रंजन प्रसाद
शोध-सारांशिका : स्वाभाविक रूप से हर मनुष्य बोलता है। अपनी भाषा को किसी न किसी रूप में ‘इनकोड-डिकोड’ करता है। वह बोलते हुए अपनी भावना-विचार प्रकट करता है, तो इस प्रक्रिया में उसके अतिरिक्त कई लोग सहभागी होते हैं। यह संचार की शब्दावली में गोलीय-प्रक्रम (सर्कुलर प्रोसेस) है जो पानी के बहाव की भाँति सदानीरा है। बहुत कम होता है कि एक व्यक्ति खुद से ही सिर्फ बात करता रहे और कोई दूसरा सहभागी न हो। शिक्षित व्यक्ति के सन्दर्भ में ‘बोलना’ एक सामूहिक क्रिया-तंत्र है। शिक्षा से जुड़ा व्यक्ति-वह चाहे विद्यार्थी हो या अध्यापक; प्राथमिक शिक्षा में सहभागी हो या उच्च-शिक्षा में योगदानकर्ता-वह प्रयुक्त-भाषा के अंतःबाह्य दशाओं, उसके शैलीगत भेदों (औपचारिक-अनौपचारिक, वाचिक-लिखित, सांकेतिक-देहभाषा आधारित इत्यादि) से गहरे जुड़ा होता है। इन सब को भाषा-प्रयोक्ता के सन्दर्भ में भाषा का कुशल-अनुप्रयोग कहते हैं। शिक्षा आधारित कौशल-विकास के तीन अनिवार्य अंग हैं-वार्ता क्षेत्र, वार्ता प्रकार एवं वार्ता शैली। भाषाविज्ञानी केनिथ ली पाइक ने इन समाज-संदर्भित भेदो-प्रभेदों, शैलीगत एवं क्षेत्रीय रूपों, विभिन्न कोडों तथा अन्य भाषाओं से प्रभावित भाषा समुच्चय को भाषा की संज्ञा दी है। पाइक के मुताबिक यही भाषा का वास्तविक रूप है। स्पष्टतः एक भाषिक समुदाय में भिन्न-भिन्न वाक्-व्यवहार होते हैं। इनमें सामाजिक प्रयोजनों, भाषिक स्तरीकरण, वक्ता-श्रोता के सम्बन्धों एवं प्रयुक्तिपरक विशिष्टताओं के अनुरूप (प्रत्यक्ष-परोक्ष) परिवर्तन होता है। यद्यपि संसार के दूर-दराज के इलाकों में, कोने-अतरों में लिखते-पढ़ते और बोलते रहे सैकड़ो ज्ञात और अज्ञात लोग भाषा के मुहाने पर एकमेक हैं। हिंदी भाषा में यह ‘काॅमन बिलाॅगिंगनेस’ सर्वाधिक है। वाचिक विभिन्नताओं के होते हुए भी हिंदीभाषी समाज के लोग एक-दूसरे को समझ लेते हैं। आमतौर पर बोलियाँ बातचीत, संवाद, सम्पर्क, संचार आदि में सबसे ज्यादा प्रयोग में लाई जाती हैं। अरुणाचल प्रदेश के सन्दर्भ में बोली का महत्त्व सर्वज्ञात है, जिसकी प्रतिपूर्ति प्रायः हिंदी अथवा अंग्रेजी भाषा के माध्यम से की जाती है। विशेषतया हिंदी में कौशल-विकास के मार्फ़त अरुणाचल की भाषाई विभिन्नता-विविधता को बचाने के अनेकानेक उपक्रम जारी है। अरुणाचली लोक-साहित्य का दस्तावेजीकरण (लिखित,
प्रकाशित, कंप्यूटरीकृत आदि) कौशल-विकास आधारित उच्च-शिक्षा का बहुउद्देशीय परियोजना है। उच्च शिक्षा का मौजूदा प्रारूप ज़मीनी तौर पर बदले इसके लिए भाषा-प्रयोक्ता को अपनी प्रयुक्त भाषा और उसकी प्रयुक्ति (रजिस्टर) को बदलना जरूरी हो चला है। अन्तरानुशासनिक तथा नवाचारी भाषा-विधान आज समय की माँग है, तो कौशल-विकास आधारित शिक्षण उस का अनिवार्य पहलू। अतएव, ज्ञान एवं विवेक आधारित सैद्धांतिकी का अनुप्रयोगात्मक उपयोग एवं कुशल संसाधन के लिए यह आवश्यक है कि आचरण-व्यवहार में व्यवहृत भाषा से अपनापा गाँठा जाए। हम जिस भाषा के प्रयोक्ता हैं उसकी संस्कृति और निष्कंटक प्रवाहमान भाषिक यात्रा को जानें। अपने इतिहास-बोध को भाषा की दृष्टि से महज़ ऊपरी तौर पर नहीं अपितु गहराई से समझे। भारत में शैक्षिणिक बदलाव और सुधार की पहली और आखिरी शर्त यही है कि हम जिस विचार-बिन्दु पर चाहे जिस भी भाषा में बहस करें, उस पर टिके रहे क्योंकि भारत की हर भाषा हमारे राष्ट्रीयता की अमिट पहचान है, अमूल्य निशानी है।
बीज-शब्द (की-वर्ड्स) : शिक्षा में भाषा की भूमिका,
संचार-अनुप्रयोग, भाषिक-विकल्पन एवं प्रयुक्ति, शैक्षणिक कौशल-विकास, तकनीकी-प्रौद्योगिकी
केन्द्रित शिक्षा, कौशल-विकास से
शिक्षा में सुधार इत्यादि।
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