Tuesday 29 November 2016

खोजी पत्रकारिता : कैसे, क्यों और विभिन्न आयाम

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 डॉ . सचिन बत्रा।

खोजी पत्रकारिता को अन्वेषणात्मक पत्रकारिता भी कहा जाता है। खोजी पत्रकारिता वह है जिसमें तथ्य जुटाने के लिए गहन पड़ताल की जाती है और बुनी गई खबर में सनसनी का तत्व निहित होता है। विद्वानों का मत है कि जिसे छिपाया जा रहा हो, जो तथ्य किसी लापरवाही, अनियमितता, गबन, भ्रष्टाचार या अनाचार को सार्वजनिक करता हो अथवा किसी कृत्य से जनता के धन का दुरूपयोग किया जा रहा हो ऐसे समाचारों को सामने लाना खोजी पत्रकारिता है। कुल मिलाकर सत्य और तथ्य का रहस्योद्घाटन करना यानी किसी बात की तह तक जाना, उसका निष्पक्ष निरीक्षण करना और उस विषय से जुड़े संदर्भ, स्थितियां परिस्थितियां व गड़बड़झाले को रेखांकित करना खोजी पत्रकारिता है।
यह भी कहा गया है कि जब तथ्यों की पड़ताल, दस्तावेजों की खोज के अलावा किसी भी गलत काम को साबित करने वाले सभी साक्ष्यों को अपने बलबूते हासिल करते हुए एक संवाददाता समाचार बनाता है उसे ही खोजी पत्रकारिता माना जाएगा। खोजी पत्रकारिता का उद्देश्य बदले की भावना या निजी हित नहीं होना चाहिए बल्कि स्वप्रेरित नैतिकता और आचार संहिता को आधार मानते हुए जिस जानकारी को बेपर्दा किया जा रहा है उसका जनहित से सीधा संबंध होना चाहिए।
खोजी पत्रकारिता को जासूसी करना भी कहा जाता है। इसे न्याय दिलाने का समानांतर मॉडल और जनता के लिए तय कानून और व्यवस्था को दायित्वपूर्ण बनाए रखने वाला मध्यस्थ भी कहा जा सकता है। यह गहन जांचपरख और अनुसंधान की एक लंबी प्रक्रिया होती है। इसे सच को सामने की प्रक्रिया भी कहा जाता है इसमेंदस्तावेजों की खोज, उनका अध्ययन, साक्षात्कार, मौके की निगरानी, सतर्कता से पड़ताल और घात लगाकर यानी छिपकर सच्चाई को तलाशने के प्रयास किए जाते हैं। खास बात यह है कि खोजी पत्रकारिता में धैर्य, अथक परिश्रम और समय का बहुत महत्व होता है। इसके अलावा खोज के लिए कई बार कई संवाददाताओं को मिलकर काम करना होता है और पर्याप्त धन की भी आवश्यकता होती है।
खोजी पत्रकार के गुण-
एक खोजी पत्रकार में अनियमितता सूंघने की क्षमता, सतर्कता, धैर्य, अथक परिश्रम, स्त्रोत निर्माण व जनसंपर्क में महारथ, निरीक्षण, संतुलन, सत्य परीक्षण, संदेह की प्रवृत्ति, दस्तावेज जुटाने का हुनर, तथ्यों को जांचने और परखने का कौशल, दबाव सहने की क्षमता, निष्पक्षता और निर्लिप्तता, लेखन में सटीक शब्दों का चयन सहित कानूनों का ज्ञान और पेचीदा विषयों पर समाचार लेखन में बचाव की तकनीक जैसे सभी गुर होने चाहिए। हालांकि उपर्युक्त गुण हर प्रकार की पत्रकारिता के लिए आवश्यक हैं लेकिन खोजी पत्रकारिता में अतिरिक्त सतर्कता, संतुलन और सावधानी की आवश्यकता होती है। उल्लेखनीय है कि आज का दौर महज समाचारों का दौर नहीं है, सम्पादक भी अपेक्षा करते हैं कि उनका संवाददाता समाचारों की तह में छिपे समाचार को खोजने और प्रस्तुत करने में समर्थ होना चाहिए। खोजी समाचारों से जनता के भीतर विश्वास की नींव मजबूत करना और पत्रकारिता में अपनी प्रतिष्ठा में उतरोत्तर वृद्धि करना आसान प्रक्रिया नहीं है। खोजी पत्रकारिता संवाददाताओं से अधिक गुणों की मांग इसलिए भी करती है क्योंकि अगर संवाददाता अपने अनुभव के आधार पर सधे और संतुलित तरीके से खोज करते हुए किसी समाचार के आगामी परिणाम का अंदाज़ा नहीं लगा सकता तो एक गलती उसके लिए गंभीर स्थितियां भी पैदा कर सकती है।

खोजी पत्रकारिता क्यों-
आम तौर पर जहां शक्ति, धन, सम्पत्ति और सत्ता होती है वहां लालफीताशाही, दस्तावेजों में हेराफेरी, अनियमितताएं, काम में लापरवाही, षड़यंत्र, गबन और नियत तोड़ने के बाद जानकारी छुपाने जैसे अपराध होने की संभावना बनी रहती है। इसके अलावा किसी व्यक्ति विशेष को लाभ या नुकसान पहुंचाने के लिए पद व धन के दुरूपयोग जैसी स्थितियां कहीं न कहीं बनती ही हैं। ऐसे उल्लंघनों पर नकेल डालने के लिए खोजी पत्रकारिता की जाती है। माना जाता है कि सरकार, कंपनियां, संगठन, संस्थान और व्यक्ति भी कई नियम, कानून, निर्णय और घटनाएं छिपाने का प्रयास करते हैं, जिनका दूसरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में खोजी पत्रकारिता उन छिपे अपराधों को सामने लाकर लोगों को न्याय दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक तर्क यह भी है कि हमें, हमारे समाज को, कानून की बागडोर संभालने के लिए अधिकृत लोगों को और जनहित के लिए निर्णायक पदों पर बैठे लोगों को समयसमय पर सतर्क किया जाना चाहिए कि गलत क्या और कैसे हो रहा है, कानून कहां तोड़ा जा रहा है, फैसलों में पक्षपात कहां है, व्यवस्था में लापरवाही या अपराध कहां और कैसे पनप रहा है। कुल मिलाकर खोजी पत्रकारिता, संतुलन कायम रखने वाली स्वप्रेरित जिम्मेदारी का निर्वाह करती है ताकि शक्ति, सत्ता और प्रभावपूर्ण पदों पर आसीन लोग अपने अधिकृत दायित्वों का निर्वाह उचित प्रकार से करते रहें। 

खोजी पत्रकारिता के औज़ारः

रैकी यानी छानबीन :
खोजी पत्रकारिता में रैकी का विशेष महत्व है। रैकी को निरीक्षण करना भी कहा जाता है यानि किसी प्राथमिक जानकारी की पुष्टि करने के लिए मौके पर छानबीन करना। रैकी एक प्रक्रिया है जिसमें स्पाट यानि स्थल का निरीक्षण करते हुए अवलोकन किया जाता है। इसमें संवाददाता की संदेह की क्षमता, कल्पनाशीलता और अनुभव की परीक्षा होती है। रैकी के दौरान पत्रकार मौके पर संदेह के अलग-अलग आयामों की दृष्टि-दिशा में संदेहों को परखता और विश्लेषण करता है। उदाहरण के लिए एक पत्रकार रोडवेज के किसी बस स्टैण्ड पर गया तो वहां उसके मस्तिष्क में कानून और यात्रियों को बुनियादी सुविधाओं से जुड़े कुछ सामान्य संदेह हो सकते हैं जैसे कि कर्मचारियों की सेवाओं में कमीं या लापरवाही कहां हैं, लोगों को कुछ न कुछ परेशानी तो होगी ही, टिकट बिक्री में छुट्टे पैसे अवैध रूप से लिए जा सकते हैं, जनसुविधाओं में कुछ कमी होगी, अधिकृत स्टॉल पर तय कीमत से अधिक वसूली हो सकती है, प्रतिबंधित वस्तुए यानी तंबाकू या सिगरेट आदि तो नहीं बेची जा रही आदि।

दस्तावेज हासिल करना :
खोजी पत्रकारिता में दस्तावेज का बहुत महत्व है क्योंकि दस्तावेज एक ऐसा साक्ष्य होता है जिसे नकारा या झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन दस्तावेज हासिल करना आसान काम नहीं है। सरकारी उपक्रमों, कार्यालयों और अन्य प्रतिष्ठानों से जुड़े दस्तावेज प्राप्त करने के लिए सूत्र या स्त्रोत संवाददाता के लिए वरदान होते हैं इसीलिए कहा जाता है कि एक पत्रकार की कामयाबी की कुंजी उसके सूत्रों का जाल होता है। हालांकि दस्तावेजों के मामले में खास सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि कई बार कर्मचारी अपने अधिकारियों से बदला निकालने के लिए ऐसे दस्तावेज संवाददाताओं को देते हैं जिससे अधिकारी को नुकसान पहुंचे लेकिन वे दस्तावेज आरोप के लिए उपयुक्त नहीं होते और उन साक्ष्यों पर आधरित समाचार के प्रकाशन से संवाददाता और समाचार की साख भी गिरती है। लिहाजा दस्तावेजों की दोहरे और तिहरे स्तर पर जांच और पुष्टि जरूर की जानी चाहिए। कुल मिलाकर खोजी पत्रकारिता में दस्तावेज ऐसे सुबूत का काम करते हैं जिनसे समाचार की विश्वसनीयता बढ़ती है। हालांकि अब सूचना प्राप्ति के अधिकार के तहत आवेदन कर कई पत्रकार सवाल पूछते हैं और जवाब में दस्तावेज की मांग करते हैं। जिसके आधार पर समाचार बनाने में दस्तावेज के अप्रामाणिक होने का खतरा नहीं होता। यानि दस्तावेजों के लिए सिर्फ सूत्रों पर निभर्रता नहीं है।

सवाल--जवाब या साक्षात्कार
आम तौर पर पीडि़त, प्रत्यक्षदर्शी और सरकारी या निजी संस्थानों के अधिकारियों से भी बातचीत कर जानकारी प्राप्त की जा सकती है। लेकिन सवालजवाब या साक्षात्कार के दो नियम है एक यह कि आप अपनी पहचान गोपनीय रखते हुए पूछताछ करते हैं और दूसरा पहचान सार्वजनिक करते हुए जवाब प्राप्त कर सकते हैं। दोनों में से क्या ठीक रहेगा इसका फैसला संवाददाता के अनुभव और विवेक से तय होता है। क्योंकि कई बार संवाददाता को पहचान छिपाने से ही सूचना मिलती है और कुछ मामलों में पहचान सार्वजनिक किए बिना जानकारी पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। 

निगरानी या औचक निरीक्षण-
इसे आन द स्पाट वेरीफिकेशन भी कहा जाता है। इसमें संवाददाता किसी अंदाजे या सूचना के आधार पर अचानक घटनास्थल पर पहुंच जाता है और या तो चुपचाप निगरानी करता है या फिर पूछताछ शुरू कर देता है। उदाहरण के लिए एक बार संवाददाता को अकाल राहत कार्य में धांधली कि शिकायत मिली, उसके बाद संवाददाता और कैमरामैन मौके पर पहुंचे तो पाया कि वहां गांव का कोई भी आदमी काम नहीं कर रहा था। उसके बाद नजदीक ही एक ढ़ाबे पर बैठकर गतिविधियों पर नज़र रखी गई। कुछ घंटों बाद अकाल राहत स्थल की ओर से मशीनों की आवाज़ आने लगी। वहां देखा तो पाया कि अकाल राहत कार्य जेसीबी की मदद से किया जा रहा है जबकि सरकारी योजना में गांव के लोगों को 100 दिन रोजगार और पारिश्रमिक देने का दावा किया गया था। इस दृश्य को कैमरे में कैद करने ग्रामीणों से बात की तो पता चला कि गांव के सरपंच ने अपने जानकारों के नाम दर्ज कर उनके बैंक खाते खोलकर अकाल राहत का पैसा हड़प रहा है।

धन का अनुवर्तन :
कहते हैं कि धन का लालच अपराध को जन्म देता है और जहां सत्ता, शक्ति और सरकार है वहां वैध और अवैध तरीके से धन जुटाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं है सभी जगह ऐसा हो मगर आम तौर पर धन से जुड़ी व्यवस्था में किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार होता ही है। इसीलिए एक संवाददाता को पैसे का लेनदेन देखना और समझना चाहिए यानी धन का पीछा करना चाहिए और असामान्य लेन-देन को जांचना-परखना चाहिए। आप अपने जीवन में ऐसे कई उदाहरण अपने इर्द गिर्द देखते होंगे वाहन चालकों से पैसे लेता हुआ ट्रैफिक पुलिस वाला, रेलवे के माल गोदाम में पैसे देते लेते लोग आदि। यह तो एक आम दृश्य है लेकिन आप सोचिए कि एक सरकारी कार्यालय के बाहर अगर कोई पान की दुकान पर नोटों की गड्डी दे रहा है तो यह निश्चय ही संदेह का विषय हो सकता है और खास तौर पर रुपये लेते समय लेने और देने वालों का विशेष सावधानी बरतना यानि अपने आस-पास सतर्कतता बरतते हुए जल्दबाजी में लेना और छिपाना भी संदिग्ध गतिविधि है। ऐसी बातों पर खास ध्यान देते हुए पड़ताल करनी चाहिए।
घात लगाकर सुबूत जुटाना-
इसे स्टिंग आपरेशन, घात पत्रकारिता या डंक पत्रकारिता भी कहा गया है। जैसा कि उपर्युक्त बिंदुओं में बताया गया है कि धन का पीछा करना, निगरानी, औचक निरीक्षण और पूछताछ आदि खोजी पत्रकारिता में सहायक होती है। उसी प्रकार स्टिंग ऑपरेशन में भी यही बिंदु काम आते हैं। दरअसल घात पत्रकारिता खोजी पत्रकारिता की कोख से ही निकली है लेकिन इसमें दस्तावेज से अधिक दृश्य या फोटो का विशेष महत्व होता है क्योंकि घात पत्रकारिता में दृश्यों को सुबूत की तरह इस्तेमाल किया जाता है। टीवी माध्यमों में स्टिंग ऑपरेशन का प्रचलन अधिक है क्योंकि यह सनसनी पैदा करती है। लेकिन आज के दौर में किसी गड़बड़ी का छिपकर फिल्मांकन करना या पहचान छिपाकर यानिडेकॉय बनकर छल से किसी कुकृत्य, गैरकानूनी काम, मिलावट, साजिश, लापरवाही, अपराध, जालसाजी या रिश्वतखोरी को प्रमुखता से दिखाया जाता है क्योंकि उस सनसनी से दर्शक उत्तेजित होते हैं।

मारे देश में इंडियन एक्सप्रेस के अश्विनी सरीन, वरिष्ठ पत्रकार व सांसद रहे अरूण शौरी, तहलका के वरिष्ठ पत्रकार अनिरूद्ध बहल व तरूण तेजपालद हिन्दू के संपादक पी साईनाथ, आजतक न्यूज़ चैनल के दीपक शर्मा व धीरेंद्र पुंडीर जैसे कई जाने माने खोजी पत्रकारों ने समाचार संकलन के क्षेत्र में गहन शोध की परंपरा को आगे बढ़ाया है। इसी प्रकार विकीलीक्स ने भी स्विस बैंक में काले धन की खोजी जानकारी सार्वजनिक कर विश्वव्यापी बहस को जन्म दिया। दरअसल स्टिंग ऑपरेशन का सीधा संबंध गोपनीयता से है, इसमें संवाददाता अपनी पहचान छिपाकर या किसी अन्य व्यक्ति की मध्यस्थता से गलत काम करने वालों की गोपनीय कारगुजारियों को अपनी नियंत्रित स्थितियों में प्रेरित करता है और उसे कैमरे में कैद किया जाता है। 
स्टिंग आपरेशन आसान काम नहीं है क्योंकि इसके लिए सही तरीका, समय और स्थितियों को बुनना पड़ता है। यही नहीं स्टिंग के लिए आपके पास पर्याप्त संसाधन होने भी जरूरी हैं। इसमें स्पाई कैमरा वॉयस रिकार्डर और कई बार मिनी सीसीटीवी कैमरे का भी इस्तेमाल किया जाता है। यह जानना जरूरी है कि जब किसी स्टिंग के विरोध में कोई अदालत का दरवाजा खटखटाता है तो संवाददाता को जवाब भी देना पड़ सकता है कि जो स्टिंग किया गया है वह जनहित से कैसे संबध रखता है। यही नहीं मांगे जाने पर संवाददाता को फॉरेंसिक जांच के लिए उन दृश्यों की मूल प्रति भी देनी पड़ सकती है। जिसमें वीडियो के प्रामाणिक होने की जांच की जाती है और प्रसारण में अनावश्यक संपादन पाए जाने पर कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। अक्सर निजता के अधिकार का उल्लंघन, शासकीय दस्तावेजों की गोपनीयता के कानून और किसी की मानहानि जैसे सवालों के जवाब पाने की बाद ही स्टिंग ऑपरेशन किया जाना चाहिए। लिहाजा स्टिंग ऑपरेशन के लिए अतिरिक्त सावधानी और समझदारी की आवश्यकता होती है।

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