Monday, 24 October 2016

‘पिंक’ वाया गीत-संगीत: पिरोया आत्मिक-सौन्दर्य का गहन माधुर्य


फिल्म समीक्षा की प्रस्तुतिपूर्व तैयारी : राजीव रंजन प्रसाद
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तू खुद की खोज में निकल

तू किस लिए हताश हैतू चलतेरे वजूद की
तनवीर  गाज़ी
समय को भी तलाश है

जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
समझ न इन को वस्त्र तू
ये बेड़ियाँ पिघाल के
बना ले इनको शस्त्र तू

तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश हैतू चलतेरे वजूद की
समय को भी तलाश है

चरित्र जब पवित्र  है
तो क्यूँ है ये दशा तेरी

ये पापियों को हक़ नही
की लें परीक्षा तेरी

तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश हैतू चलतेरे वजूद की
समय को भी तलाश है

जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है

तू आरती की लौ नही
तू क्रोध की मशाल है

तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश हैतू चलतेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
 
चुनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी कपकपायेगा

अगर तेरी चुनर गिरी
तो एक भूकंप आएगा

तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश हैतू चलतेरे वजूद की
समय को भी तलाश है.



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