Tuesday, 18 October 2016

आत्ममुग्ध राष्ट्रवाद की जगह आलोचनापरक राष्ट्रवाद के समर्थक थे प्रेमचंद : प्रो. वीर भारत तलवार

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दिनांक: 18/10/2016, दिन: मंगलवार; अपराह्न 11: 30 बजे
स्थान: हिन्दी विभाग, राजीव गाँधी विश्वविद्यालय


प्रो. वीर भारत तलवार एवं डाॅ. जोरम यालम नाबाम

साहित्य अकादमी प्राप्त लेखक श्री येशे दोरजी थोंगची

डाॅ. ओकेन लेगो एवं अमिष वर्मा

राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में 18 अक्तूबर को प्रातः साढ़े ग्यारह बजे एकदिनी व्याख्यान-सीरिज का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में जेएनयू के भारतीय भाषा केन्द्र से सेवानिवृत्त प्रोफेसर वीर भारत तलवार मुख्य अतिथि के रूप आमंत्रित थे। अरुणाचल प्रदेश के ख्यातनाम साहित्यकार श्री येशे दोरजी थोंगची भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। श्री थोंगची ने अपने चर्चित उपन्यास शव काटने वाला आदमीकी रचना-प्रक्रिया के बारे में हिन्दी विभाग के विद्यार्थियों से बातचीत की। अरुणाचल की जनजातीय समाज में मौजूद सांस्कृतिक चेतना एवं सामाजिक अन्तर्विरोध को विद्यार्थियों के सामने रखते हुए श्री थोंगची ने उपन्यास के मुख्य कथानक और कथावस्तु के बारे में भी संक्षेप में सभी को बताया। प्रो. वीर भारत तलवार ने प्रेमचंद और राष्ट्रीय आन्दोलनविषय पर राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में अपना महत्त्वपूर्ण वक्तव्य दिया। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेमचंद के शुरुआती लेखन से परिचय कराने के साथ ही यह भी बताया कि प्रेमचंद गाँधी के समर्थक थे, लेकिन असहमति की स्थिति में दो-टूक आलोचना करने से नहीं चूकते थे। भूकम्प जैसे प्राकृतिक आपदा को गाँधी जी द्वारा दैवीय-प्रकोप या दैवीय-न्याय कहे जाने पर प्रेमचंद ने उनकी जबर्दस्त आलोचना की।

प्रो. तलवार के अनुसार,सोजे वतनउन्होंने उर्दू में लिखी, तदुपरान्त वह हिंदी की मुख्य-धारा से जुड़े। रंगभूमिउनका पहला ऐसा उपन्यास है जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन को अपनी लेखकीय चेतना के केन्द्र में रखा। प्रेमचंद की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे आत्मबल और नैतिक बल को भारतीय जनसमाज का मेरुदण्ड मानते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि बंदूक की लड़ाई से करोड़ों भारतीय जनता को राजनीतिक-सामाजिक एवं आर्थिक स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती है। प्रेमचंद की इस मजबूत धारणा और दृष्टिकोण को महात्मा गाँधी से प्रभाव ग्रहण करने का संयोग कहा जा सकता है जो उनके लेखन में प्रधानतः स्पष्ट दिखाई देता है। लिहाजतन, प्रेमचंद का साहित्य देशभर में राष्ट्रीयता का अलख जगाने वाला साबित हुआ।

प्रो. तलवार ने अपनी बात पर बल देते हुए कहा कि-प्रेमचंद ने राष्ट्रवाद की पारम्परिक अवधारणा को चुनौती दी। उन्होंने राष्ट्रवाद के प्रभुत्त्व को नकारा। प्रेमचंद राष्ट्रवाद को साम्राज्यवादी शक्ति और नीति का अंगरक्षक या कि उसका प्रायोजक नहीं मानते थे। इसी कारण राष्ट्रवाद को लेकर उनका रूख आलोचनापरक दिखाई पड़ता है। प्रेमचंद ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में हिस्सेदारी कर रह नेताओं के वर्ग-चरित्र पर सीधे प्रश्न खड़े किए जो मुख्यतः आभिजात्य बौद्धिक या फिर उच्च मध्यवर्ग के लोकप्रिय नेता थे।अपने वक्तव्य के आखिर में प्रेमचंद की लेखकीय प्रतिबद्धता को बताते हुए प्रो. तलवार ने प्रेमचंद को भारतीय किसानों का सबसे बड़ा पक्षधर माना जिनके लिखे उपन्यासों, कहानियों एवं लेखों में किसान-मुक्ति के प्रश्न और उनकी सुरक्षा-संरक्षा का भावबोध स्पष्ट दिखलाई पड़ता है।

कार्यक्रम की शुरुआत सुबह साढ़े नौ बजे मिजोरम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक अमिष वर्मा के व्याख्यान से हुई। श्री अमिष भक्तिकालीन कविता का सामाजिक स्वरविषय पर बोल रहे थे। कार्यक्रम के आरंभ में सभी अतिथियों का स्वागत हिंदी विभागाध्यक्ष डाॅ. ओकेन लेगो ने किया; वहीं इसका संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डाॅ. अभिषेक कुमार यादव द्वारा किया गया।
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रिपोर्ट:
राजीव रंजन प्रसाद
सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग
राजीव गाँधी विश्वविद्यालय

अरुणाचल प्रदेश-791 112  

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