Tuesday 5 July 2016

संगति का फल


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रामनाथ था प्यारा लड़का
घर में बड़ा दुलारा लड़का
रोज बाग को जाता था वह
अपना मन बहलाता था वह

था गुलाब का पेड़ कहीं पर
फूल खिले थे उस पर सुन्दर
एक दिन उसके पास वह जाकर
सूंघा धेला एक उठाकर

महक रहा था ढेला ऐसा
ताजा फूल महकता जैसा
उसको हुआ अचंभा भारी
घर को छोड़ भागा फुलवारी

बाबा से जब पूछा जाकर
कहा उन्होंने तब समझाकर
तुमने इसे जहाँ पर पाया
होगी वहाँ पेड़ की छाया

फूल वहाँ पर झड़ते होंगे
इसके ऊपर पड़ते होंगे
पाई जो सुवास निर्मल है
यह अच्छा संगति का फल है।

=> यह कविता रेल में यात्रा के दौरान मुझे एक बुजुर्ग यात्री से सुनने को मिली। उन्होंने इसे 1954 ई. के आस-पास पढ़ा था अपनी स्मृति के इस अद्भुत कोलाज को प्रसंगवश हमारे लिए स्मरण किया, तो मैंने इसे तुरंत लिख लिया। यह प्यारी कविता आप तक प्रेषित है-राजीव रंजन प्रसाद

3 comments:

  1. मेरी दादी ने मुझे ये कविता बचपन में याद करवायी थी.. कालांतर में कुछेक पंक्तियाँ स्मृति से धुंधली हो गयीं थीं..
    दादी अब मेरे साथ नहीं हैं.. लगा ये कविता भी उनके साथ ही चली गयी..
    इस मंच पर यह कविता पोस्ट करने के लिए आपकी बहुत आभारी हूँ ����

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  2. Meri dadi ne ye poem unke bachpan me padhi thi. Aur unko abhi tak poori poem yaad hai.. word to word.. waise wo aksar cheeje bhool jati h😅

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