Monday 6 June 2016

‘आप विजेता हैं, जीतेंगे ही’ के हौसले को समर्पित एक कविता

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वक्त का तकाजा है
बातों के बवण्डर से
डरिए मत
ऋण अदा करने में
जितना हो सके
खपिए
खाद होते जाने में
खुद को
आत्मा की अपनी गहराइयों की
गूँज को दबाकर
चुनिंदा बातों को
सुनिए और गुनिए
अकेले पड़ जाने में
अपनी औकात को
पहचानकर चलिए
पूरी तरह कोशिश में रहकर
अपने स्वभाव में
तल्लीन होकर
धार के प्रवाह में
अपनी कर पाने को उतरिए
अकेले नहीं हैं आप
आपकी गहराई
साथ लहरती है
हो सके तो
इस पहचान में
इस लहरते ज्ञान में
खुद तरल हो जाइए
लोगों की रगों के
खून में लहरिए
बाहर आकर भी
पूरा भीतर हो जाइए
वक्त का तकाज़ा है
सतर्क होकर चलना
रहना जरूरी है
रास्ता बढ़ाते
आगे तक जाना है!
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मलय, वागर्थ, जून, 2015 में प्रकाशित

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