Wednesday, 30 August 2017

हिंदी और उसका भविष्य






भाषा विचारों के आदान प्रदान का सशक्त माध्यम है। यद्यपि सम्पूर्ण जीव मात्र अपनी बात अपने समजीवी तक किसी न किसी रूप मे पहुचाते हैं किंतु उस जीव मात्र के बीच उस समय का संवाद उन दोनो के बीच सिर्फ उसी समय तक रहता है। उसको लिपिबद्ध नही किया जा सकता है। जीवमात्र मे मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है। अत: उसने अपने विचारों के आदान प्रदान हेतु भाषा को चुना। उसे लिपिबद्ध किया जिससे उन विचारों को जीवित रखा जा सके अर्थात आवश्यकता पड़ने पर उनको पढ़ा जा सके।

भाषा का प्रादुर्भाव और विकास मनुष्य के विकास के साथ साथ आगे बढ़ा। हमारे देश मे यमन, हूंण, मुगल और अंग्रेज आये, साथ ही अपनी संस्कृतियों को भी साथ लाये। इस लिए प्राकृत भाषा मे अरबी, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी, आदि भाषाओं के शब्दों का समावेश हो गया। जिस समय अंग्रेज भारत छोड़ कर जा रहे थे अर्थात जब हम आजाद हुए, उस समय हमारे देश मे सरकारी काम-काज की भाषा अंग्रेजी थी। अत: हमारे देश के सम्मुख सब से बड़ी समस्या थी कि हमारे सरकारी कामकाज की भाषा देश की आजादी के बाद क्या हो। इसके लिए एक सर्वेक्षण हुआ। इस सर्वेक्षण से यह बात सामने उभर कर आई कि देश के सर्वाधिक भू भाग मे, सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। अत: संविधान की धारा 343 के अंतर्गत देवनागरी लिपि मे लिखी हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।

भाषा विज्ञान के अनुसार हिंदी एक पूर्ण भाषा है। हिंदी की देवनागरी लिपि पूर्णत: वैज्ञानिक है । हिंदी भाषा मे जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है जिसके कारण संवाद और उसके लेखन मे त्रुटियां न के बराबर होती हैं। अगर हम अंग्रेजी भाषा की व्याकरण और उसकी शव्द रचना से हिंदी भाषा की तुलना करें, तो हम हिंदी को अंग्रेजी भाषा से कहीं ज्यादा सशक्त पाते हैं। अंग्रेजी के 26 स्वर और व्यंजनों की तुलना मे हिंदी भाषा मे स्वर और व्यंजनों की संख्या 46 है । कहने का अर्थ है कि अंग्रेजी भाषा से हिंदी भाषा मे व्यापकता अधिक है।

यह तो भाषा विज्ञान की बात है किंतु यदि हम व्यावहारिक दृष्टिकोंण से देखें तो भारतवर्ष मे हिंदी बोलने वालों की संख्या अंग्रेजी बोलने वालों की अपेक्षा बहुत अधिक है। अत: हम इसे संपर्क भाषा की संज्ञा देते हैं। जिस भाषा मे हम अधिकतम लोगों से सम्पर्क कर सकते हैं वही भाषा सम्पर्क भाषा कहलाने की हकदार है। अत: हिंदी हमारी राजभाषा के साथ साथ सम्पर्क भाषा भी है। देश के किसी भी कोने मे किसी न किसी रूपमे आज हिंदी बोलने या समझने वाले लोग हैं। हिंदी राजभाषा के साथ साथ सम्पर्क भाषा के रूप मे अपनी सार्थकता सिद्ध करती है।

स्वतंत्रता की अलख जगाने से लेकर देश की आजादी मे हिंदी का योग्दान रहा है। अनेक कवियों एवं लेकखों ने हिंदी भाषा के माध्यम से देश प्रेमियों का मार्ग प्रशस्त किया है। तभी तो हिंदी को हिंदुस्तान का पर्याय माना गया है। “हिंदी हैं हम वतन हैं हिंदोस्तां हमारा” स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था – “राष्ट्र के रूप मे हिंदी हमारे देश की एकता मे सब से अधिक सहायक है।“ उनका कहा हुआ कथन आज चरित्रार्थ हो रहा है। सभी को अपनी अपनी भाषा प्रिय लगती है। जिस भाषा को बच्चा अपनी मां से सीखता है,उसके प्रति उसका लगाव स्वाभाविक है। किंतु जब हम बड़े होकर देश के लोगों से संवाद करते हैं, अपने घर परिवार से निकल कर देशवासियों की कतार मे खड़े होते हैं, जब हम अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी मे जाते हैं, तब हमें अपनी राजभाषा का ज्ञान होना जरूरी है।

आज का युग कम्प्यूटर का युग है, सूचना तकनीक का युग है। इस क्षेत्र मे भी हिंदी किसी से पीछे नहीं है। कम्प्यूटर पर हिंदी सम्बंधित नित नये प्रयोग हो रहे हैं। इसे कैसे सरल और सुलभ बनाया जाये, इस पर विचार किया जा रहा है। अन्य भाषाओं से हिंदी मे अनुवाद सम्बंधी समस्या भी कम्प्यूटर पर सुलझ गई है। फोंट आदि की समस्या के निदान हेतु यूनी कोड लाया गया है। अब हम हिंदी मे ई मेल आसानी से भेज सकते हैं। कहने का अर्थ है कि अब हम कम्प्यूटर पर हिंदी मे आसानी से कार्य कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त टी.वी. चैनलों से प्रसारित कार्यक्रमों से भी हिंदी की लोकप्रियता बढ़ी है।इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जिन सेटेलाइट चैनलों ने भारत में अपने कार्यक्रमों का आरम्भ केवल अंग्रेजी भाषा से किया था; उन्हें अपनी भाषा नीति में परिवर्तन करना पड़ा है। अब स्टार प्लस, जी.टी.वी., जी न्यूज, स्टार न्यूज, डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिक आदि टी.वी.चैनल अपने कार्यक्रम हिन्दी में दे रहे हैं।

आप भारत के किसी भी कोने मे चले जाइये, किसी भी दफ्तर मे जायें, सभी जगह हिंदी मे कमकाज करने वाले मिल जायेंगे। यहां तक कि वित्तीय लेनदेन जैसी संस्थाओ मे भी अब हिंदी मे कामकाज होने लगा है। भारत सरकार की सभी परीक्षाओं मे हिंदी माध्यम से परीक्षा दी जा सकती है। भाषा के रूप मे अब किसी तरह का बंधन नहीं है। राजभाषा के कार्यांवयन व विकास हेतु राजभाषा अधिनियम 1963 व राजभाषा नियम 1976 बनाये गये। राजभाषा के कार्यांवयन पर नजर रखने हेतु राजभाषा संसदीय समिति का गठन हुआ जिसकी अध्यक्षता भारत सरकार का तत्कालीन गृहमंत्री करता है। इस तरह से संबैद्धानिक रूप से भी हिंदी के विकास की दिशा निर्धारित है।

आज हमारे देश की जनसंख्या लगभग सवा सौ करोड़ है जो दुनियां के सभी देशों से ज्यादा है। अत: हमारा देश विश्व व्यापार का एक बहुत् बड़ा केंद्र है। सारे विकसित देश चीन, जापान, अमेरिका आदि सभी हमारे साथ व्यापार बढ़ाना चाहते हैं। व्यापार मे संवाद बहुत ही आवश्यक है। अत: दूसरे देशों के लोग भी हिंदी सीखने मे उत्सुकता दिखाने लगे हैं। एक सर्वे के अनुसार विदेशों मे हिंदी के प्रति बढ़ती रुचि को देखते हुए जगह जगह हिंदी लर्निंग सेंटर खुल रहे हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के महाविद्यालयों मे हिंदी के प्रति विदेशी छात्र/छात्राओं की रुचि बढ़ी है । हमसे अच्छे संबंध बनाने के लिए हिंदी सीखना कितना जरूरी है, इसका जीता जगता उदाहरण है कि अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने एक विशेष राशि अमरीका में हिंदी, चीनी और अरबी भाषाएं सीखाने के लिए स्वीकृत की है। इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व मे हिंदी सीखने वालों की संख्या बढ़ी है। विश्व में हिंदी की स्थिति पर चर्चा करते हुए यह जान लेना भी आवश्यक है कि प्रयोक्ताओं की संख्या के आधार पर 1952 में हिंदी विश्व में पांचवे स्थान पर थी। 1980 के आसपास वह चीनी और अंग्रेजी क़े बाद तीसरे स्थान पर आ गई। 1991 की जनगणना में हिंदी को मातृभाषा घोषित करने वालों की संख्या के आधार पर पाया गया कि यह पूरे विश्व में अंग्रेजी भाषियों की संख्या से अधिक है। इतना ही नहीं , विश्व में हिंदी प्रयोग करने वालों की संख्या चीनी से भी अधिक है और हिंदी अब प्रथम स्थान पर है। उसने विश्व की अंग्रेज़ी समेत अन्य सभी भाषाओं को पीछे छोड़ दिया है. आज भारत में सर्वाधिक पत्र-पत्रिकाएं तथा उनके पाठक हिंदी में हैं।

जन सम्पर्क के साथ साथ यदि हम जन संचार पर पर नजर डालें तो तो इसमे टीवी चैनलों एवं फिल्म जगत का योगदान सराहनीय है। एक सर्वेक्षण के अनुसार हिंदी भाषा मे बनने वाली फिल्मों की संख्या अन्य भाषाओं मे बनने वाली फिल्मों की संख्या से बहुत अधिक है। यही नहीं, हिंदी फिल्मों के गीत लोगों की जुबान पर रहते हैं। हिंदी गीतों की गुंगुनाहट काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैली है। इस तरह से सिनेमास्कोप ने हिंदी के प्रचार प्रसार मे महती भूमिका निभाई है। जन संचार का इस तरह से जन सम्पर्क मे आना हिंदी के सशक्तीकरण को दर्शाता है।

उपर्युक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। आज हिंदी लिखने बोलने वालों को हेय दृष्टि से नही देखा जाता है। हिंदी का ज्ञान होना अब सम्मान जनक है। सभी क्षेत्रों मे हिंदी ने विकास किया है। मै इस जगह एक बात कहना आवश्यक समझता हूं कि आज हिंदी के बारे मे एक बात निश्चित तौर पर तय है कि वह दुरूह व क्लिष्ट न होकर सरल और सुबोध है। आज की हिंदी वह हिंदी है जिसने अपने आप मे अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओं के शब्दों को समाहित कर लिया है। उसमे सामंजस्य की सामर्थता है। अब वह अन्य भाषाओं से कटी कटी सी नही रहती है बल्कि उनके साथ सामंजस्य स्थापित करने को तैयार है।

वह दिन दूर नही है जब न केवल भारत बल्कि सारे विश्व मे जन सम्पर्क की भाषा हिंदी होगी। अंत मे मैं स्वतंत्र भारत के शिल्पी सरदार बल्लभभाई पटेल के कथन को दुहराना चाहता हूं जिसमे उन्होंनें कहा था –“हिंदी हमारी राजभाषा है, उसका अध्ययन करने में हमें गर्व का अनुभव होना चाहिए।“ आइये हम सब मिल कर हिंदी को समृद्ध बनायें और अपना कार्यालयीन काम काज हिंदी मे करें। 

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