Wednesday, 31 May 2017

पीजीडीएफएच के विद्याार्थियों के नाम एक अध्यापक की पाती

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दो सत्रों के एकवर्षीय प्रयोजनमूलक हिन्दी पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स की समाप्ति के उपलक्ष्य पर
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राजीव रंजन प्रसाद


सुनो। आप ही को कह रहा हूँ। थोड़ा कान दो मेरी बातों को। मेरे कहे शब्दों को रंगीन चश्मे की जगह सादे चश्मे से देखो। जैसे सादे पानी में दिख जाता है अपना चेहरा। मेरे शब्दों के अर्थ भी दिखेंगे। जानो आप।

शिक्षक हूँ। पढ़ाना मेरा धर्म है। सीखाना कर्तव्य। इन सबसे बढ़कर आपको अपने दमखम पर ऊँची बातों को जानने के लिए प्रेरित करना मेरा नैतिक लक्ष्य है। आपमें बड़ों के कहे खास वाक्यों का अर्थ अपनी भाव-संवेदना, भाव-भंगिमा, देह-भाषा आदि में समझ लेने की क्षमता विकसित करना मेरे शिक्षक होने की सर्वोत्तम उपलब्धि है। अपनी भाषा और शब्दों में अपनी दुनिया को जानना; कितना जरूरी है, क्यों जरूरी है। एक शिक्षक ही तो बताता है। मैं आपसे कोई उम्मीद नहीं पालता लेकिन अपनेआप से कभी भी उम्मीद छोड़ने की बात नहीं कहता। अपने से किया प्राॅमिश आप न तोड़ें; बाकी दुनिया को नाराज कर दें; चलेगा।

विद्यार्थियों, आप भाषा को उस नज़रिए से देखो जिस ‘एंग्ल’ से एक तैराक स्वीमिंग पुल को देखता है। सबसे पहले जो है उसके प्रति अपने अन्दर अनुराग पैदा करें। भाषा के प्रति दिलचस्पी जगने से अभिरुचि को ऊपर उठने का अवसर मिलता है जिससे हमारे अन्दर जिज्ञासा जन्म लेती है। यह जिज्ञासा बड़ी गुणों की खान है। जिज्ञासा महाबलि है, बाहुबलि है। आप ऐसे सोचेंगे तो हिंदी भाषा के प्रति आप सजग हो लेंगे। उसके प्रयोग के प्रति, व्यवहार के प्रति आपका सजग हो जाना ही इस बात की गारंटी है कि आप भाषा को बहुत चाहते हैं।

इसके बाद आता है विषय। भाषा गणितीय फार्मूला नहीं है। पाइथोगोरस प्रमेय या सूत्र तो हरगिज़ नहीं। लेकिन भाषा के शब्दकोश असल रामबाण हैं। इन्हें कम से कम दो भाषाओं में अधिकारपूर्व जानने की चेष्टा कीजिए। अंग्रेजी और हिंदी आसान विकल्प हो सकते हैं।

हिंदी भाषा में कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण, जीवनी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है जो भाषा कौशल या कि व्यावहारिक अनुप्रयोग के नाम से जाना जाता है। अब इस पोस्ट को ही ले लीजिए। मैं आपके लिए यह चिट्ठी ‘यूनिकोड फाॅण्ट’ में टाइप कर रहा हूँ और आप बिना किसी बाधा के पढ़ रहे हैं। हुई न मजे की बात। यह हिंदी की व्यावहारिक क्षमता यानी कौशल है जिसे प्रयोजनमूलक हिंदी कहना सही है। आप फंक्शनल हिंदी सीखकर अनुवाद न करें, सम्पादक के नाम पत्र न लिखें, प्रतिवेदन यानी ‘रिपोर्ट’ न तैयार करें, प्रेस विज्ञप्ति न बनाए, सरकारी विभागों में काम आने वाले नाना प्रकार के पत्रों के नमूने न बना सकें; तो फिर यह अच्छी बात कैसे मानी जाएगी। 

आपसबों को शुक्रिया कि आप एक वर्ष यानी दो सेमेस्टर राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में बतौर पीजीडीएफएच के विद्याार्थी रहे। आप कितना सीखें और हम आपको जनाने में कितना सफल रहे; यह तो बाद की बात है। अगर आप इस कोर्स में दाखिला लेकर कुछ जान सके जिसका लाभ आपको आने वाले समय में होगा; तो यह हमारे लिए आपकी ओर से दिया गया सबसे बड़ा उपहार होगा।

आशा है, आप अन्य विद्यार्थियों को भी इस पाठ्यक्रम में आने की सलाह देंगे। हिंदी-कौशल का ज्ञान पाने, मीडिया की समझ बढ़ाने, कार्यालयी पत्राचार को जानने, राजभाषाधिकारी के रूप में कार्य करने, अनुवाद सम्बन्धी दक्षता विकसित कर सकने आदि में यह कोर्स कितना उपयोगी और अनिवार्य है, यह आप अन्य लोगों को बताएँ यह अभिलाषा रखना एक शिक्षक की उत्कंठा है जिसका आप सम्मान करेंगे।

आप अच्छे से रहें, अपना ध्यान रखें और दूसरों के प्रति ईमानदारी दर्शाने से पहले स्वयं के प्रति सदैव ईमानदार रहे इसी आशा के साथ मैं अब लिखना बंद करता हूँ। 

ढेरों बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ आपको।

राजीव सर
हिंदी विभाग,
राजीव गाँधी विश्वविद्याालय।



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