Thursday, 2 February 2017

क्या आप अपने अध्यापक की नहीं सुनते?


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यदि ऐसा है, तो तुरंत खुद को बदलिए। अध्यापक-प्राध्यापक सही मायने में मार्गदर्शक होते हैं। दुनिया को देखने की दृष्टि और निर्णय करने की क्षमता उन्हीं के द्वारा आपमें विकसित की जाती है। यदि आप लगातार कक्षा से अनुपस्थित होते हैं, तो आपके अध्यापक-प्राध्यापक के दिल को ठेस पहुँचती है जो अपने पेशे के प्रति ईमानदार हैं और आपके भावी भविष्य को लेकर सचेष्ट भी।

यदि आप अपने अध्यापक-प्राध्यापक के किसी भी आग्रह को अनसुना कर देते हैं। कक्षाएँ अनियमित और मनमाने ढंग से ‘ज्वाइन’ करते हैं तो आपकी विश्वसनीयता ख़त्म होती है और स्वयं के प्रति अध्यापक-प्राध्यापक का भरोसा टूटने लगता है। यदि आप चाहते हैं कि अच्छी शिक्षा दी जाए और आज के समय-परिस्थिति के अनुकूल योग्यता, कौशल, तकनीकी ज्ञान आदि मुहैया कराई जाए तो आपको सबसे पहले खुद को बदलना होगा। पढ़ने के प्रति दिलचस्पी पैदा करनी होगी। जानने की ललक और उत्कंठा को जगाना होगा और जिज्ञासा एवं नई चीजों की खोज की प्रवत्ति को बढ़ावा देना होगा।

अपनी योग्यता के अनुसार काम कीजिए। दूसरे की नकल की जगह कई-कई असफल काम में जुटे रहिए। यह असफलता ही आपको एक दिन असल सफलता दिलाएगी। नकल करने वाले एक सीमा के बाद बुरी तरह टूट जाते हैं और उनकी पहचान धुँधली पड़ जाती है। साहसी, आत्मविश्वासी और दृढ़निश्चयी भाव-संकल्प रखने पर ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न होती है।

कल 04 फरवरी है, अपने राजीव गाँधी विश्वविद्यालय का 34वाँ स्थापना दिवस। आप इस दिन को धूमधाम से ‘सेलिब्रेट’ कीजिए।

आपका
राजीव सर

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