Monday 23 January 2017

हिंदी लिखते मात्राओं की ग़लती से कैसे बचें?


https://educationmirror.org/2017/01/22/matra-ki-galti-kaise-sudharen-10-tips/

by Virjesh Singh
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भाषा शिक्षण के लिए दीवारों पर बना एक चित्र।
हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें किसी अक्षर या वर्ण के चारों तरफ मात्राएं लगती है। किसी वर्ण के ऊपर लगने वाली मात्रा को बच्चे'उपली मात्रा' कहते हैं। वहीं किसी वर्ण के नीचे लगने वाली मात्रा को बच्चे 'निचली मात्रा' कहते हैं।
इसी तरीके से किसी वर्ण के पहले लगने वाली मात्रा को 'छोटी मात्रा' और पीछे लगने वाली मात्रा को 'बड़ी मात्रा' कहते हैं, जिसे आवाज़ों के अंतर द्वारा स्पष्ट करके बच्चों को पढ़ना सिखाया जाता है। इसी तरीके से कुछ मात्राएं वर्णों के बीच में भी लगती हैं। जैसे क्रिया, रूपक इत्यादि।
अगर हम बच्चों से बात करें तो पहली-दूसरी कक्षा के बच्चे और उनको पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों के बारे में बताते हैं कि किस बच्चे को कैसी मात्राएं पढ़ने में दिक्कत हो रही है। बच्चे पढ़ते-पढ़ते बहुत सी मात्राएं सीख लेते हैं, जो शिक्षक ने नहीं सिखाई होती हैं। जैसे रूकना या रूपया जैसे शब्द में उ की मात्रा को बच्चे आसानी से पढ़ पाते हैं।
अगर हम सामान्य तौर पर हिंदी लिखते समय होने वाली गलतियों की बात करें तो अमूमन हम अपने लिखे तो दोबारा नहीं पढ़ते। इस कारण से होने वाली गलतियां हमारी आदत का हिस्सा बन जाती हैं। इस कारण से हम उनको देखकर भी अनदेखा कर जाते हैं। इससे बचने के लिए इन दस बातों का ध्यान रख सकते हैं

10 टिप्स

1.बोल-बोल कर लिखने की कोशिश करें

2. अपना लिखा किसी और को पढ़ने के लिए दें

3. लिखित सामग्री को ग़ौर से पढ़ने की आदत डालें

4. अपने लिखे को दोबारा पढ़ें

5. अगर किसी शब्द के बारे में कोई उलझन हो तो शब्दकोश की मदद लें या गूगल सर्च करें

6. शब्दकोश डॉट कॉम जैसे विकल्प का इस्तेमाल ऑनलाइन कर सकते हैं

7. मात्रा लगने से किसी वर्ण की ध्वनि में बदलाव होता है, लिखते समय इस बात का ध्यान रखें। लिखित सामग्री को पढ़कर आप पता लगा लेंगे

8. हिंदी भाषा में मात्राओं की ग़लती से बचने का सबसे सुंदर उपाय छोटे बच्चों को पढ़ाना है ताकि आप खुद भी उनकी परेशानी को समझ पाएंगे। अपने लिए भी समाधान खोज पाएंगे।

9. पहली-दूसरी कक्षा की हिंदी की किताबों को फिर से पढ़ सकते हैं। छोटे बच्चों के लिए सुलेख और श्रुतलेख वाले विकल्प से काफी मदद मिलती है।

10. आखिर में सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मात्राओं की गलती पर ध्यान देना जरूरी है, मगर विचारों की स्पष्टता और कंटेंट को अनदेखा करना भी ठीक नहीं है। इसलिए व्याकरण के साथ-साथ कहने वाली बात के ऊपर भी ध्यान दें।

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