Tuesday, 13 December 2016

रौशनी को चाँद से मुहब्बत है, हमें ऊर्जा से बेपनाह प्यार हो : राजीव रंजन प्रसाद

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(विशेष साक्षात्कार : राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक राजीव रंजन प्रसाद से
ऊर्जा संरक्षण दिवस के मौके पर खास बातचीत)
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- सर, सबसे पहले मैं आपसे यह पूछना चाहूँगी कि ऊर्जा क्या है?
  • ऊर्जा यानीइनर्जी यह मूल्यवान परिसंपत्ति है; ऐसी बेशकीमती चीज जिसका होना महत्त्वपूर्ण है। ऊर्जा हमारे लिए सुविधाजनक और ढेर सारी सहूलियतों से भरा-पूरा संसाधन है। यह हमारे विकसित, समृद्ध होने का संकेत देता है। ऊर्जा के कई स्रोत है नवीकरणीय ऊर्जा यानी जिसकी उपलब्धता पर्याप्त है। जैसे: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि। दूसरा हैं, अनवीकरणीय ऊर्जा। यह स्रोत सीमित है। लेकिन आज सबसे अधिक निर्भरता इन पर ही है। जैसे: जीवाश्म ईंधन, गैसे, कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि।
- ऊर्जा के महत्त्व को आप कैसे देखते हैं?
  • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके होने से हमारी जिंदगी आसान होती है। विज्ञान द्वारा बनाई हुई तकनीकी-प्रौद्योगिकी को हम तभी उपयोग कर पाते हैं। ऊर्जा के ये स्रोत हो तो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी बेजान हो जाएगी। हम अपने सुखी जीवन को अकेला, नीरस और बेकार महसूस करने लगेंगे। उदाहरण देख लीजिए, मोबाइल चार्ज हो, तो हमारी छटपटाहट कितनी बढ़ जाती है। मोबाइल चार्ज कैसे होंगे-बिजली द्वारा। बिजली उत्पादन के लिए बड़े उपकरण और कच्चे संसाधन चाहिए। जैसे: कोयला, पानी, जीवाश्म ईंधन आदि। आज हर देश आगे बढ़ने की प्रक्रिया में है, विकसित होने की चाह में है। विकासशील देशों में यह होड़ सबसे अधिक है। भारत खुद एक विकासशील राष्ट्र है। यहाँ प्राकृतिक जीवन की जगह महानगरीय जीवन की माँग लगातार बढ़ रही है। लोग बड़ी-बड़ी आलीशान इमारतों में रहने लगे हैं। पानी, बिजली आदि उनकी बुनियादी जरूरत तेजी से बढ़ रही है। शहरी समाज को ऊर्जा की जरूरत सबसे अधिक है। कल-कारखानों, उद्योग-धंधों में ऊर्जा की खपत भारी मात्रा में है। इसके बिना एक भी व्यक्ति का काम एक क्षण नहीं चल सकता। ऊर्जा महत्त्वपूर्ण है। यदि यह हो, तो हमारे मोबाइल पर अपडेट्स आने बंद हो जाएंगे। सोशल मीडिया की ट्रैफिकिंग प्रभावित हो जाएगी। टेलीविजन, कूलर, फ्रीज, एसी, कार, मोटर आदि सब जगह कठिनाई उत्पन्न हो सकती है। इंटरनेट की दुनिया तो मानों थम-सी जाएगी। हमारा सोशल वल्र्ड, कंटेक्ट और इंटरेक्शन इससे बेहद प्रभावित हो जाएगा।
- सर, क्या सरंक्षण अथवा इसे बचाने का प्रयास इसीलिए जरूरी है?
  • रोजमर्रा की जिंदगी में ऊर्जा का ख़पत जितना आवश्यक है, उतना ही उसका संरक्षण भी जरूरी है। विज्ञान मानता है, ऊर्जा को पैदा होने के बाद नष्ट कर पाना संभव नहीं है; हाँ, उसका किसी दूसरे रूप-प्रकार-प्रयोजन में अवश्य ही रूपांतरण किया जा सकता है। वैज्ञानिक रूप से यह बात सौ फीसदी सच है; लेकिन ऊर्जा का रूपांतरण कर सकना कोई आसान कार्य नहीं है। जैसे ऊर्जा का नाम लेना आसान है। लेकिन उसे उत्पन्न करना अथवा बड़ी मात्रा में उत्पादन बहुत मुश्किल काम है। जीवाश्म ईंधन ऊर्जा का प्राकृतिक स्रोत है। जैसे: पेट्रोल, डीजल, गैस, कोयला आदि। ऊर्जा का यह प्राथमिक स्रोत है जिसे अनवीकरणीय ऊर्जा कहते हैं। यानी ऐसी ऊर्जा जो हमें प्राकृतिक रूप से कुदरत द्वारा उपहारस्वरूप मिली है। इसके खत्म हो जाने पर पुनः उपलब्ध कर पाना अथवा इनका आसानी से निर्माण संभव नहीं है। जीवाश्म ईंधन के स्रोत अत्यंत सीमित है। भारत में जिस तेजी से खपत जारी है। ऊर्जा का संकट और गहराने वाला है। हर एक आदमी को ऊर्जा की जरूरत है। इसलिए ऊर्जा संरक्षण और इसे बचाने के बारे में सोचने की जवाबदेही भी सबकी बनती है।
- अच्छा सर, ऊर्जा संरक्षण को लेकर हमें सतर्क रहने और सजग प्रयास करने की जरूरत है।
  • कई बार बहुत महत्त्व की चीज आसानी से मिल जाए, तो हम उसकी अहमियत भूल जाते हैं। उसके साथ हमारा बर्ताव ठीक नहीं होता है। हम जाने-अनजाने लापरवाही अधिक बरतते हैं। ऊर्जा के साथ यही हो रहा है। हम ऊर्जा का उपयोग अवश्य करते हैं, लेकिन उसे बचाए रखने के प्रति हमारी कोई सोच नहीं दिखाई देती है। हम रोशनी के बल्ब को घर-बाहर कितना प्रयोग में लाते हैं। तुरंत हमारा हाथ दीवाल पर लगे स्वीच पर जाता है। हम बल्ब जलाते हैं। हम पंखा, कुलर, एसी चलाकर अपने कोकूल-चिल रखने का हमेशा प्रयत्न करते हैं। लेकिन कई बार हम इन चीजों को खुला छोड़ देते हैं, जलते रहने देते हैं। यों ही चलते रहने देते हैं। घर में बल्ब को जलते छोड़ हम काम पर निकल आते हैं। पंखे का स्वीचआॅफ करना भूल जाते हैं। टेलीविज़न, कंप्यूटर आदि रोज की आदतों में शामिल चीजों को बंद करने की बजाए घंटोंआॅन रख कोई दूसरा काम करने लग जाते हैं। इससे ऊर्जा की खपत लगातार होती है। यानी बेवजह, बेमकसद और बिना कारण। इन सब मानवीय कारणों से ऊर्जा संरक्षण को लेकर गंभीर जागरूकता की जरूरत आन पड़ी है। हमें एक अभियान की तरह ऊर्जा बचाने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहलकदमी करनी पड़ी रही है।
- सर, बहुत अच्छी जानकारी हमें जानने को मिल रही है। अब मेरी मुख्य जिज्ञासा यह है कि 14 दिसम्बर ऊर्जा  संरक्षण दिवसके रूप में अनिवार्य रूप से मनाये जाने की पीछे मुख्य मकसद क्या है?
  • आज दिसम्बर की 14 तारीख है। इस दिन को ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य हमारी बेहतरी और पारम्परिक विरासत को आने वाली भावी पीढ़ी के लिए संजो-सहेज कर रखना है। आज की तारीख में, तो मुख्य लक्ष्य यही है कि ऊर्जा की खपत को सन्तुलित और सही किया जाए। अनावश्यक खर्च यानी फिजूलखर्ची से बचा जाए ताकि इस संसाधन के अभाव को संकट की तरह हमें झेलना पड़े। यदि हम ऊर्जा के बारे में सही तरीके से जान लें, उसकी भूमिका और महत्त्व को पहचान लें, तो ऊर्जा संरक्षण का मुख्य उद्देश्य पूरा हो जाएगा।
- अपनी ओर से इस दिशा में उठाए जाने वाले ठोस कदम अथवा जरूरी प्रयास क्या हो सकते हैं?
  • ऊर्जा को लेकर घर के बच्चों से लेकर बड़ों तक को संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। उन्हें घरेलू अनुशासन में रखते हुए ऊर्जा के मुख्य स्रोत से परिचय कराना होगा। सभी को ऊर्जा की अहम भूमिका और अपनी जिंदगी में इनका विशेष महत्त्व क्या है; इस बात से अवगत कराना होगा। आम जागरूकता के तहत लोगों तक यह बात पहुँचानी होगी कि ऊर्जा की न्यूनतम जरूरत सबको है, इसलिए इसे बचाने का प्रयास भी सभी को करना चाहिए। ऊर्जा संसाधनों का हमेशा नपा-तुला उपयोग करें। फालतू तरीके से ऊर्जा खरचने से अच्छा है कि उसे बचाए।
- एक सवाल मेरे भीतर काफी देर से कौंध रही है वह कि ऊर्जा बचाने को लेकर इतनी रोक-टोक अथवा ढेर सारी हिदायतों के पीछे मुख्य वजह क्या हो सकती है?
  • यह जरूरी प्रश्न है जिस बारे में उपयुक्त ढंग से बातचीत, चिंतन, विमर्श, संवाद आदि किए जाने की जरूरत सबसे अधिक है। दरअसल, ऊर्जा की पहुँच आज दूर-दराज के इलाकों तक नहीं है। बिजली और गैस आपूर्ति की ही बात करें, तो यह सबको आसानी से उपलब्ध नहीं है। अपने ही प्रदेश की बात करें, तो बिजली के उत्पादन में अरुणाचल प्रदेश का कोई मुकाबला नहीं है। अकेले इस राज्य में 50,000 मेगावाट बिजली पैदा होती है जिससे देश के अन्य हिस्सों में बिजली पहुँचती है। कई राज्य इससे लाभान्वित होते हैं। लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी विचारणीय है, देखने योग्य है। बिजली का आविष्कार हुए लगभग 125 वर्ष हो चुके हैं मगर इस दुनिया में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो आज भी बिजली के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। कभी देखा तक नहीं है। ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने बिजली को देखा अवश्य है लेकिन उसके उपभोग की कल्पना करना मुश्किल है। यही बात रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, स्मार्ट फोन, इंटरनेट आदि के बारे में कही जा सकती है। देश की बड़ी आबादी आधुनिक संसाधनों का उपयोग और कई सारे जरूरी सुविधाओं का उपभोग नहीं कर पाती क्योंकि उन तक ऊर्जा के वास्तविक माध्यम बिजली ही उपलब्ध नहीं है। सवाल उठता है क्यों तो इस कारण कि बिजली का उत्पादन जितना किया जा सक रहा है, उससे अधिक की माँग लगातार की जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिनों 80,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया जिसे ऊर्जा संरक्षण का ख्याल रखते हुए 62 हजार मेगावट के करीब किया गया। अतः ऊर्जा संरक्षण पर बल देना जरूरी है क्योंकि ऊर्जा की जरूरत तो सभी को है लेकिन इसकी आपूर्ति और वितरण सबके लिए एकसमान रूप से संभव नहीं है।
- सर, ऊर्जा उत्पादन के सम्बन्ध में भारत की आत्मनिर्भरता किस प्रकार की है?
  • आज भारत ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। ईंधन, गैस, तेल आदि को दूसरे देशों से आयात किया जाता है। जबकि हम अपनी सुविधा के लिए जरूरी सामानों की ढेर लगा चुके हैं। वाहनों की फौज खड़ी है। यातायात-परिवहन के सार्वजनिक साधन से लेकर घरेलू उपयोग की सभी चीजें ऊर्जा की माँग पहले करती है, सुविधा बात में देती हैं। आज हम इन सुविधाओं का आदि हो गए हैं। कुछ चीजों के लिए एकदम अनुकूलित। इसके बिना हमारी जिंदगी में जैसे कोई रौनक ही नहीं हो सकता। यानी ऊर्जा हमारे सुख-समृद्धि का जरूरी मानदंड नहीं, मैं तो कहना चाहूँगा कि मेरुदंड बन चुका है।
- …ऊर्जा का बेकार में अपव्यय भी बहुत अधिक है,
  • हाँ, इस बारे में सोचें तो ट्रैफिक समस्या पहले ध्यान में आता है। सड़कों पर अनावश्यक रूप से गाड़ियों की लम्बी कतार होने से बहुत समस्या आती है। जाम में फँसे होने के कारण ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा बेकार हो जाती है।  ऊर्जा का अपव्यय कई बार हमारे अनियंत्रित व्यवहार तथा असंतुलित जीवनशैली के कारण भी होते हैं। कहना होगा कि जिस तेजी से विज्ञानयुक्त तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी में बदलाव हुआ है; उस गति से हमारा समाज नहीं बदला है। इस बदलाव की दिशा में ही यह ऊर्जा संरक्षण की बात उठ रही है। लोग ऊर्जा की नवीकरणीय स्रोत की तलाश में है। यानी ऊर्जा के वे प्राकृतिक संसाधन जिसके ख़त्म होने की गुंजाइश कम है। जैसे: सौर ऊर्जा, पानी ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि।
- ऊर्जा संरक्षण की दिशा में किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण प्रयास क्या कुछ हो सकते हैं?
  • इसके लिए दीर्घकालिक सोच और दूरदर्शी योजना की जरूरत है। मजबूत इच्छाशक्ति से ही ऊर्जा संरक्षण संभव है। हमें अपने ऊपर नियंत्रण रखना होगा। महत्त्व तथा उपयोगिता के आधार पर ऊर्जा के उपयोग के बारे में संवेदनशील ढंग से विचार करना होगा। नई पीढ़ी को इस बारे में ज्यादा हाथ बँटाने की जरूरत है। उसे ऊर्जा की परिभाषा जानने के अलावा उसकी अहमियत को भी समझना होगा। अधिक से अधिक लोगों को ऊर्जा के बारे में बताना होगा। उसके उद्गम स्रोत से परिचित कराना होगा। हमें लोगों को बताना होगा कि हम ऊर्जा के जिन स्रोतों पर निर्भर हैं, वह कुछ दिनों अथवा वर्षों के बाद समाप्त हो जाएंगे। इस स्थिति से निपटने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा का स्रोत तलाशने होंगे। नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग एवं उपभोग पर अधिक बल देना होगा। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि ऐसे संसाधन हैं जिसका अधिकाधिक उपयोग से प्रकृति पर्यावरण को नुकसान नहीं है। जल-जंगल और ज़मीन को क्षति नहीं पहुँचने वाली है। इन स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा द्वारा हम अपनी जरूरतों की पूर्ति कर सकते हैं। इस दिशा में सभी देश जुटे हैं। वे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत को खोज निकालने के प्रयास में है। लेकिन फिलहाल हमारे पास जो है, उसे बचाए रखना जरूरी है। हम ऊर्जा की बरबादी रोकने में सफल होते हैं, तो यह हमारी आगामी पीढ़ी के लिए वरदान साबित होगा।
- क्या इसके बुरे असर यानी घातक परिणाम भी हो सकते हैं?
  • ऊर्जा संकट के दुष्परिणाम हम आज भुगत रहे हैं। मानव आबादी बढ़ने से चीजों की खपत में बेतहाशा वृद्धि हुई है। असंतुलित विकास ने पूरे पारिस्थितिकीय-तंत्र को बिगाड़ डाला है। पृथ्वी पर पदार्थ की मात्रा सीमित है। जल-जंगल-ज़मीन का अपना इतिहास भूगोल है। कुदरती चीजें एक दिन में नहीं बनती। उनके बनने और उपयोग में लाने योग्य होने में लम्बा वक़्त लगता है। आज अनवीकरणीय संसाधन ही हमारे ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत हैं। जैसे-जीवाश्म ईंधन, तेल, कोयला आदि। इनका जिस तेजी से उपभोग हो रहा है उससे अगले 30 वर्ष बाद ऐसा संकट खड़ा होगा जिसका जवाब देना मुश्किल है। वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों की ओर हमारा ध्यान तो है, लेकिन प्रगति संतोषजनक नहीं है। जबकि पूरी दुनिया तेजी से करवट ले रही है। वायुमंडल की ओजोन परत क्षतिग्रस्त हो चुकी है जिस कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह तक पहुँची हैं। इसके अपने नुकसान हैं। पराबैंगनी किरणे मानव-समाज में नानाविध बीमारियों को पैदा कर दे रही हैं। पृथ्वी की सतह जरूरत से ज्यादा गर्म है। ऋृतु-चक्र और मौसम इससे प्रभावित है। प्राकृतिक आपदा, जलवायु परिवर्तन आदि गंभीर समस्याएँ उत्पन्न करती जा रही हैं।
- …तो इस बारे में ठोस उपाय अथवा समुचित विकल्प आखिर क्या हो सकते हैं?
  • व्यक्ति का संकल्प ही सबसे बड़ा विकल्प है। उसके बाद ऊर्जा के वैकल्पि स्रोतों की तलाश करनी चाहिए। उस पर अपनी निर्भरता बढ़ाने का प्रयास सबसे अधिक करें। ऊर्जा संरक्षण के लिए मानवीय व्यवहार-व्यक्तित्व में सबसे जरूरी बदलाव लाने होंगे। युवा पीढ़ी को इस बारे में अधिक कार्य करने की जरूरत है। क्योकि बाद के दिनों में गंभीर संकट और परिणाम उन्हें ही भुगतना होगा। ऊर्जा की जरूरत भर उपयोग और बाकी बचत का फार्मूला ग़लत नहीं है। इससे ऊर्जा की पहुँच का दायरा बढ़ेगा। दूसरे लोग भी लाभान्वित होंगे। इससे यह भी होगा कि ऊर्जा बचाने की काशिश में हम प्रकृति के अधिक नजदीक जाएंगे।
- आज के दिन आप हमारे सजग और जिज्ञासु पाठकों से क्या कहना पसंद करेंगे?
  • ऊर्जा संरक्षण के लिए एक दिन काफी नहीं है। यह तो बस एक प्रतीकात्मक दिन-तारीख है जिस दिन हम ऊर्जा संरक्षण के प्रति संवेदनशील होने की प्रेरणा पाते हैं। अन्य बाकी दिनों तक तो ऊर्जा बचाने में हम-आपको ही जुटना है। एक-एक कर जुटने से ही समाज में एकजुटता आएगी। हमारा आत्मबल और मनोबल बढ़ेगा। ऊर्जा बचाने के फायदे बहुत गिनाए जा सकते हैं, लेकिन जरूरी है-अमल यानी जानी हुई चीज को व्यवहार में लाना। युवा पीढ़ी इस दिशा में काम करे। लोगों को ऊर्जा की बरबादी करने से रोकें। कम से कम ऊर्जा साधनों का इस्तेमाल करे। क्योंकि आज की बचत ही कल का भविष्य है। आखिर में इस पंक्ति के साथ अपनी बात को विराम देना चाहूँ कि रौशनी को चाँद से मुहब्बत है, हमें ऊर्जा से बेपनाह प्यार हो।
 - आपने बड़ी ही संजीदगी और जिंदादिली संग हमसे बातचीत की, सर आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
  • जी शुक्रिया, धन्यवाद!

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(राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के प्रयोजनमूलक हिंदी के विद्यार्थियों के लिए साक्षात्कार कैसे लेंवर्कआउट के अन्तर्गत प्रस्तुत)

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