Friday 4 November 2016

मस्तिष्क: दिमाग की बात है!


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आप क्या सोचेंगे यह आप जानें, पर सोचते कहाँ से और कैसे हैं मुझसे जानें: राजीव रंजन प्रसाद
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मनुष्य होने के नाते हम सोचते हैं। कुछ भी निर्णय लेने से पूर्व विचार करते हैं। कई बार दूसरों से इस मद में सलाह लेते हैं। यानी एक ऐसी प्रक्रिया अपनाते हैं जिसमें सोचने-समझने का अवकाश हो। चिन्तन-प्रक्रिया इसी का नाम है; और चिन्तन सम्बन्धी सारी गतिविधियों का केन्द्र है हमारा मस्तिष्क। दिमाग यानी ‘ब्रेन’। शोधान्वेषी बलराम प्रसाद इस बारे में विचार करते हुए कहते हैं-‘‘मनुष्य के पास ही सोचने-समझने की शक्ति है इसीलिए उसे थिंकिंग एनिमल माना जाता है। प्रकृति ने उसे मस्तिष्क दिया है। लेकिन चूहों, चिंपाजी और दूसरे प्राणियों में भी मस्तिष्क होता है। फिर सभी प्राणियों में मानव को ही बुद्धिमान क्यों माना जाता है?’’ वह उत्तर भी देते हैं, मानव-मस्तिष्क भीतर से एक छिले हुए अखरोट जैसा दिखाई देता है। इसके तीन मुख्य भाग हैं-मस्तिष्क वृंत, अनुमस्तिष्क और प्रमस्तिष्क।

मस्तिष्क वृंत गर्दन के तुरंत ऊपर वाले भाग में होता है। आकार में यह छोटी अंगुली के बराबर होता है। इसके भीतर तंत्रिका तंतुओं का एक विशेष जाल-सा होता है। यही भाग मस्तिष्क को जागृत या चैतन्य अवस्था में बनाए रखता है।

अनुमस्तिष्क का कार्य शरीर के संतुलन को बनाए रखना होता है। अंसतुलन की स्थिति में शरीर के विभिन्न अंगों को सूचना भेजकर उन्हें यह सावधान करता है। चलने, फिरने और शरीर को साधने में जितनी भी पेचीदगी होती है, उनका नियंत्रण इसी के पास होता है। इसमें अगर खराबी आ जाए तो शरीर को लकवा मार सकता है। कोई भी अंग बेकार हो सकता है। यहाँ तक कि व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। नशीली या मादक वस्तुओं का असर भी इसी हिस्से पर सबसे अधिक होता है। कई बार ‘हल्की’ और ‘थोड़ी’ मात्रा/द्रव्यमान कह हम नशीली पदार्थों का लगातार सेवन करते जाते हैं। यह भूल जाते हैं कि इसका असर ज्यादा तो नहीं; लेकिन थोड़ा जरूर हो रहा है। चूँकि नशे की यह लत हमारी तत्काल जान नहीं ले लेते हैं; इसलिए हमें इन नशीली पदार्थों में दिलचस्पी हो जाती है। बाद में यही असर बढ़कर हमारे जान के लिए आफत हो जाते हैं। फिर सुधारना मुश्किल होता है। हम अपनी जिंदगी अपने ही हाथों बर्बाद कर चुके होते हैं। यदि हमने अपने अनुमस्तिष्क का ख्याल रखा होता, तो यह नौबत कभी नहीं आती। हम अपनी जान से हाथ धोने की स्थिति में नहीं पहुँच जाते। यदि आप सोचते हैं कि मरने से कुछ फर्क नहीं पड़ता, तो जरा सोचिए दूसरे को इसका कहाँ फर्क पड़ेगा।

अब आगे बढ़ते हैं और मस्तिष्क के अंतिम भाग यानी प्रमस्तिष्क की बात करते हैं। प्रमस्तिष्क सबसे बड़ा होता है। यह समूचे मस्तिष्क का तीन चैथाई भाग घेरे हुए होता है। यह बाएँ और दाएँ गोलाद्र्धों में बँटा होता है जिन्हें प्रमस्तिष्कीय गोलार्द्ध कहते हैं। यह एक तरह से मस्तिष्क का केन्द्रीय कार्यालय है। जहाँ से शरीर के सभी क्रियाकलापों के लिए आदेश दिए जाते हैं और सभी प्रकार के क्रियाओं का नियंत्रण किया जाता है। दरअसल, प्रमस्तिष्क हमारी सम्पूर्ण बुद्धि, विचार और स्मृति का भी केन्द्र है। बीती बातों की जानकारी रखने के साथ-साथ, बोलने देखने, सुनने, सूँघने और माँसपेशियों को चलाने की शक्ति भी इसी में केन्द्रित रहती है। यह तंत्रिकीय कोशिकाओं से बना होता है जिनकी संख्या अरबों में होती है। सभी उच्च मानसिक प्रक्रियाएँ इसी के नियंत्रण में होती है।

ध्यान देना जरूरी है कि हमारे लिखने, पढ़ने, बोलने अथवा कुछ बनने की दृढ़ निश्चय की क्षमता भी इसी के कारण होती है। दूसरे का सुनकर उसी को सच मानते हुए व्यवहार करने लगना या कि उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने लगना इसी हिस्से का काम है। सही-ग़लत में से हम किसी एक को चुनते हैं और फिर अपनी राय, मत या विचार नहीं बदलते; ऐसी आत्मविश्वासी भावना हमारे भीतर इसी भाग में देखने को मिलती है। यह सही है कि मस्तिष्क के अन्य सहयोगी अवयवों के कार्यों का समन्वय बनाए रखने में भी इसकी प्रमुख भूमिका होती है। आश्चर्यजनक और रोचक तथ्य यह है कि आराम की स्थिति में मानव-मस्तिष्क पूरे शरीर द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले आॅक्सीजन की बीस प्रतिशत मात्रा की खपत स्वयं करता है।
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